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9. नवें वर्तमान आचार्य श्री तुलसी मरिण (तुलसी) हैं जो वी. सं. 2463 (वि. सं. 1993 - ई. सं. 1936 ) में ग्राचार्य पद पर आरूढ़ हुए । तेरापंथ ने चतुर्मुखी प्रगति की और यह प्रगति चल रही है । तेरा पंथ का अभूतपूर्व विकास, प्रचार और प्रसार होता जा रहा है । विहार क्षेत्र भी सारे देश में बढ़ता जा रहा है । जन-जन में तेरापंथ से परिचित कराने वाले सन्त हैं। सभी धर्मों के सम्प्रदायों को आदर की दृष्टि से देखने वाले प्रथम तेरा पंथी जैनाचार्य हैं। भू-मण्डल के अनैतिकता और दुराचार दूर करने का इनका लक्ष्य है और इस दिशा में 'अणुव्रत' आन्दोलन का वि. सं. 2005 ( ई. सं. 1948 ) से प्रवर्तन किया और देश में अध्यात्म भाव और नैतिकता का उत्थान कर रहे हैं । विनोबा भावे ने अणुव्रत के नकारात्मक नियम अधिक होने से उसका समर्थन किया है । प्राचीन रूढ़ियों और अन्ध-विश्वासों के विरुद्ध मेवाड़ में परिवर्तन लाने के लिए 'नये मोड़' की भी योजना रखी । उन्होंने अपनी प्रबल वक्तृत्व शक्ति से हजारों लोगों को, मद्य, मांस, भांग, तम्बाकू आदि दुर्व्यसनों से मुक्त किया । स्याद्वादी जीवन उनका है और व्यक्तिगत से समष्टिगत जीवन के प्रेरक हैं। उन्होंने ग्रामीण, हरिजन आदि समस्त जनता से सम्पर्क रखते हुए, राष्ट्र नेता और शासक वर्ग में धर्म का प्रचार किया है और कर रहे हैं । तेरा पंथ मन्तव्यों का परमत सहिष्णुता दिखलाते हुए निर्भीकता के साथ निरूपण किया है । प्राकृत संस्कृत और हिन्दी में उन्होंने व उनके शिष्य वर्ग ने रचना की है और उनके विद्वान लेखक, आशुकवि, शतावधानी आदि शिष्य हैं। प्राचार्य श्री तुलसी मुनि ने श्रमरणों और श्रमणियों के अध्यापन की भी व्यवस्था की है । प्राध्यात्मिक शिक्षा क्रम नाम से पाठ्यक्रम व परीक्षा प्रणाली प्रारम्भ की है । साध्वियों का भी साधु की तरह दर्शनशास्त्र का अध्ययन चलता है ।
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आचार्य तुलसी न केवल संघ के प्रबल व्यवस्थापक और संरक्षक हैं पितु साहित्य के पद्य और गद्य दोनों के सृजक भी हैं। उन्होंने हिन्दी, संस्कृत और राजस्थानी में अपनी लेखनी चलाई है । काव्य दर्शन, उपदेश, भजन तथा स्तवन आदि की रचना की । 'माणिक महिमा', डालिम चरित्र', 'कायशी विलास' के ग्रन्थ के रचयिता हैं । संस्कृत में 'जैन साहित्य दीपिका'
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