Book Title: Shraman Parampara Ki Ruprekha
Author(s): Jodhsinh Mehta
Publisher: Bhagwan Mahavir 2500 Vi Nirvan Samiti

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Page 57
________________ [43] पत्रीय और हस्त लिखित शास्त्रों को विधिवत् सूची तैयार करने का श्रेय स्व. श्रमरण पुण्यविजयजी को है । जैन श्रमरणों के अतिरिक्त पं. सुखलालजी, पं. लाभचन्दजी, पं हरगोविन्दजी, पं बेचरदासजी, डॉ. ए. एन. उपाध्याय, डॉ. हीरालाल जैन, डॉ नेमिचन्द शास्त्री, पं. चैनसुखदास प्रादि की साहित्य सेवा प्रशंसनीय है । ये प्रसिद्ध जैन विद्वान माने जाते हैं । पं. सुखलालजी की 'तत्वार्थ सूत्र की टीका ' श्रेष्ठ कृति है । उन्होंने जैन दर्शन के बारे में नई दृष्टि अपनाई है । . गत पाँच सौ वर्षों (वी सं. 2001 से 2500 ) में, दिगम्बर जैन श्रमणों और श्रावकों ने, जैन साहित्य, अधिकतर अपभ्रंश और हिन्दी भाषा में लिखा है । वी. सं. की 21 वीं सदी (वि. सं. की लगभग 16 वीं सदी) में दिगम्बर श्री जिन चन्द ने 'सिद्धान्त सार' श्री ज्ञानभूषण ने 'सिद्धान्त सार भाष्य' और 'आदीश्वर फागु' तथा भट्टारक श्री शुभचन्द्र ने 'प्रमाण परीक्षा', 'वनस्पति कौमुदी' आदि ग्रन्थ लिखे । प्रा. शुभचन्द, व्याकरण, छन्दोलंकार के पारगामी थे । उन्होंने विहार, गोड, कलिंग, कर्णाटक, तौलव, पूर्व गुर्जर में जैन धर्म का प्रचार किया। श्री वादिचन्द्र ने 'पार्श्व पुराण' (वि. सं. 1640) पवन दूत और ज्ञान सूर्योदय (वि. सं. 1648 की रचना की। 22 वीं वीर शताब्दी (वि. सं. 17 वीं शताब्दी) में काष्ठ संघ के प्रधानाचार्य षट् - भाषा चक्रवर्ती, श्री भूषण ने 'शान्ति पुराण', 'पाण्डव पुराण', 'हरिवंश पुराण' की रचना की। वीर सदी 23 वीं (वि. सं. 18 वीं) में श्री वादिराज ने वि. सं. 1729 में 'ज्ञान - लोचन -स्तोत्र' लिखा था । दिगम्बर सम्प्रदाय में आचार सम्बन्धी ग्रन्थों की रचना की कमी रही है । इस विषय पर 'मूलाधार' ग्रन्थ प्रसिद्ध है जिस पर वीर नन्दि ने 'प्राचार सार', प्रशाधर ने 'धर्मामृत' और सकल कीर्ति ने 'मूलाचार प्रदीप' बनाया । श्रावकाचार के लिए सामन्त भद्र का 'रत्न करण्ड' प्रख्यात ग्रन्थ है जिस पर प्रभाचन्द ने टीका लिखी है । दिगम्बर कवियों ने अपभ्रंश, हिन्दी, ढूंढाडी राजस्थानी में ग्रन्थ साहित्य लाखों श्लोक प्रमाण लिखा है । जयपुर स्थित दिगम्बर भट्टारकों की Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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