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वस्तुपाल तेजपाल गुजरात के राजा वीरधवल के मंत्री थे जिन्होंने जैन धर्मों के प्रादर्थों को मान कर सम्पूर्ण जनता की समानता-पूर्वक सेवा की। वी. स. 1758(वि. स. 1288-ई. स. 1231)में विश्व-विख्यात लूण वसहि के नाम से विशाल कलामय संगमरमर के मन्दिर का निर्माण कराया। इसके निर्माण में 12 करोड़ 53 लाख का सद्व्यय होने का अनुमान किया जाता है। इस मन्दिर में भगवान् नेमिनाथ की कसौटी की जिन प्रतिमा की प्रतिष्ठा उनके गुरु विजयसेन सूरि और उदयप्रभसूरि द्वारा कराई गई थी। विश्व के इतिहास में जन सेवा के कार्यों में अटूट द्रव्य का व्यय करने वाले महापुरुष विरले ही मिलेंगे । वस्तुपाल, अनुपम दानवीर, अद्वितीय प्रजापालक, और कुशल महा मंत्री था। वह वीर योद्धा नीति-निपुण, कला-प्रेमी और साहित्य-रसिक महाकवि था ।। प्रा. उदयप्रभ सूरि ने 'संघपति-चरित्र' और 'सुकृत-कीतिकल्लोलिनी' ग्रंथ लिखे हैं । वे और विजय सेन सूरि प्राचीन अपभ्रंश गुजराती के उत्तम रचनाकार गिने जाते हैं।
वीर संवत् 1783 से 1785 ( वि. स 1313 से 1315-ई. स. 1256 से 1258 ) में भारत के तीन वर्षीय दुष्काल में जैन श्रावक कच्छ देशीय भद्रेश्वर का श्रीमाली सेठ जगडुशाह ने ममध से गुजरात व गुजरात से राजस्थान प्रदेश तक के दुष्काल पीड़ितों के लिए इतना अन्न वितरण किया कि इस महापुरुष का आदर्श अमर हो गया। उन्होंने एतदर्थ 112 दानशालाएं और पानी के लिए प्याऊए खोली व 'जगजीवन हार जगड कहलाए।2
वी. सं. की 19वीं शताब्दी (वि. सं. की 15वीं शताब्दी) में देवेन्द्र सूरि प्राचार्य हो चुके हैं। उन्होंने 'कर्म-ग्रन्थ' और 'श्राद्ध दिनवृत्यादि' अनेक ग्रन्थ लिखे हैं। उनके सदुपदेश से मेवाड़ के वीर केसरी समरसिंह और उनकी माता जयतुल्ल देवी ने चित्तौड़ पर 'श्याम पार्श्वनाथ का मन्दिर' निर्माण 1 'जैन परम्परा नो इतिहास' (भाग तीजो) लेखक त्रिपुटी महाराज पृ.
305 से 308
'Jainism in Rajasthan' Dr. K. C. Jaip. p. 214-218 2 वही पृ. 311,
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