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पेड ने प्रतिष्ठित कराई । पेथड मांडवगढ़ के महाराज जयसिंह का मंत्री था । उन्होंने 700 उपाश्रय, 84 जिन मन्दिर जिनमें से मांडवगढ़ में वी. स. 1800 (वि. स. 1330- ई. स. 1273 ) के लगभग 18 लाख रुपये का 72 देवरी वाला विशाल जिन मन्दिर भी था, निर्माण कराये एवं 36 हजार सोना मोहर खर्च करके बड़े ग्रन्थ भंडार स्थापित किये। पंथड कुमार और और उनके पुत्र झाँझड प्रतिबोधक शासन प्रभावक धर्मघोष सूरि थे । 1
वीर शताब्दी 1900 ( विक्रम की 15वीं सदी के पूर्वार्द्ध) में खरतर गच्छ के विख्यात प्राचार्य जिनकुशल सूरि ( दादाजी ) हुए जो बड़े विद्वान माने जाते हैं । उन्होंने सिंध में धर्मोपदेश देकर जैन धर्म का भारी प्रचार किया, संघ यात्रा निकाली और वी. सं. 1822 (वि. सं. 1352 ई. स. 1295) में स्वर्गवासी हुए सो आज भी वे बहुत पूजे जाते हैं ।
वीर शताब्दी 1900 ( विक्रम की 15 वीं सदी) में दिगम्बर हुबंड ज्ञातीय विक्रम श्रावक ने नेमि चरित्र और अन्य गृहस्थ हस्तिमल्ल जो जाति से ब्राह्मण थे, दिगम्बर रूपक व नाटक लिखे जिनके नाम विक्रान्त कौरव, 'अंजना पवनंजय', 'सुनंदा, 'प्रतिष्ठा तिलक' है । ये संस्कृत और कन्नडी भाषा के ज्ञाता थे । वीर सदी 1900 ( विक्रम की 15वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध) में जिनप्रभ सूरि ने दिल्लीपति महमूद तुगलक को प्रभावित किया एवं 'श्र रिणक चरित्र - द्वाश्रय' ग्रन्थ लिखा ।
वीर संवत् की 20वीं शताब्दी ( विक्रम की 15वीं सदी) में विख्यात प्राचार्य सोमसुन्दर सूरि और मुनिसुन्दर सूरि हुए हैं । पूर्वाचार्य श्री सोमसुन्दर सूरि महान् प्रभावक आचार्य हुए हैं । उनकी श्राम्नाय में 1800 श्रमण थे । मेवाड़ के महाराणा मोकल और कुम्भा उनके भक्त थे । सबसे महानतम कार्य जो इनके समय में हुआ वह था प्रख्यात राणकपुर जैन मन्दिर की प्रतिष्ठा जो वी सं. 1966 (वि सं. 1496 - ई सं 1439 ) में उनके द्वारा हुई 12 अप्रतिम कला -युक्त राणकपुर का जैन मन्दिर जिसको 'लोक्य 1 वही. पृ. 3:4-318
2 'जैन परम्परा नो इतिहास' ( भाग तोजो ) : लेखक त्रिपुटी महाराज, पृ.
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