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हेमचन्द्राचार्य और कुमारपाल :
वीर सवत् की 17 वीं सदी (विक्रम की 12 वीं सदी)में कलिकाल सर्वज्ञ हेमचन्द्राचार्य हुए जिनका जन्म वी. स. 1615 ( वि. स. 1145-ई. स. 1088 ) और स्वर्गवास वी. स. 1699(वि. सं. 1229-ई.स. 1172)में हुआ था,ये प्रख्यात जैनाचार्य, विद्या के अनुपम भंडार और एक 'जंगम विश्वविद्यालय' माने जाते हैं। उनका प्रभाव गुजरात के राजा कुमारपाल पर अत्यधिक था। राजा कुमारपाल जैन धर्म के महान् प्रचारक हुए और 'परमार्हत' उपाधि से प्रसिद्ध हुए, अपने राज्य में पूरी अमारि ( जीव हिंसा निषेध) की घोषणा कराई यहाँ तक कि यूक (जू) मारना भी अपराध गिना जाता था। राजा कुमारपाल की विशाल हृदयता और प्राचार्य श्री की संस्कृति का प्रभाव, गुजरात की अस्मिता और भारतवर्ष के इतिहास में अमिट अलंकार के रूप में प्रसिद्ध रहेगी।
हेमचन्द्राचार्य, अनेक ग्रन्थों के भी रचयिता थे ! उन्होंने तीन कोटि करोड़ श्लोक प्रमाण साहित्य की रचना की। 'सिद्ध-हेम-शब्दा-नुशासन' नाम से असाधारण प्रतिभा पूर्ण नवीन व्याकरण के रचयिता थे। शब्दानुशासन के साथ-साथ छन्दानुशासन, काव्यानुशासन और लिंगानुशासन की रचना की थी। इसके अतिरिक्त उन्होंने 'कुमारपाल चरित्र' ( प्राकृत ), 'द्वाश्रय' महाकाव्य ( सस्कृत ) अभिधान चिंतामणि, त्रिषष्टि श्लाका पुरुष चरित्र, योग शास्त्र, प्रमारण मीमांसा, अध्यात्मोपनिषद्, वीतरागस्तोत्र, 'सप्तसंधान, परिशिष्ट-पर्व आदि कई ग्रन्थों का निर्माण किया। पिटर्सन ने प्राचार्य हेमचन्द्र को ज्ञान का समुद्र कहा है ।2
- वीर सवत की 17वीं (वि. स. की 12वीं) सदी में विधि पक्ष प्रवर्तक आ. श्री जिनवल्लभसूरि हुए जिन्होंने चैत्य का त्याग कर नवांगीवृतिकार अभयदेवसूरि से पुनः दीक्षा ली। वी. स. 1634 (वि. स. 1164-ई. स. 1107) में अपना काव्य संघ-पट्ट चित्तौड़ के जिन मन्दिर की दीवार पर 1 जैन धर्म का इतिहास, मुनि श्री सुशीलकुमारजी. पृ. 240 2 'Acharya Hemchandra is the ocean of knowledge. Peterson
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