Book Title: Shraman Parampara Ki Ruprekha
Author(s): Jodhsinh Mehta
Publisher: Bhagwan Mahavir 2500 Vi Nirvan Samiti

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Page 44
________________ [30] खुदवाया। बागड़ की जनता-91,000 घरों के परिवार जनों को प्रतिबोध किया और राजा नरवर्मा को धर्मलाभ प्रदान किया। उन्होंने 'अप्टक शृंगार शतक' 'पिण्ड विशुद्धि प्रकरण' आदि ग्रन्थ भी लिखे। उनसे बी. स. 163) (वि. स. 1169 ई. स. 1112) में विधिपक्ष की उत्पत्ति हुई। वी. स. 1644 (वि. स. 1174-ई. स. 1117) में प्रसिद्धवादी देवसूरि हुए जिन्होंने सिद्धराज की सभा में दिगम्बरों को वाद में पराजित किया। राजा ने तुष्टि दान देना चाहा जो न लेकर उसको जिन मन्दिर में खर्च करवाया और उसकी प्रतिष्ठा भी की। वी. स 1669 (वि. स. 1199-ई. स 1142) वृद्धि (फलोधि) पार्श्वनाथ तीर्थ की स्थापना हुई जिसकी प्रतिष्ठा भी वी. स. 1674 (वि स. 1204-ई. स. 1147) में फल्लोधि और पारामग में प्रा. देवसूरि के कर कमलों से हुई। उन्होंने न्यायशास्त्र का महान् ग्रंथ स्याद्वाद्रत्नाकर लिखा था । प्राचार्य जिनदत्त सूरि नाम के प्रभावक प्राचार्य खरतरगच्छ के हुए हैं जो सारे देश में ‘दादा साहब' के नाम से प्रसिद्ध हैं। उन्होंने लक्षाधिक राजपूतों को जैन बनाए। ये दिव्य शक्तिधर, चमत्कारिक और सिद्ध के रूप में प्रतिष्ठित पुरुष हुए हैं । उनकी रचनाएँ 'गणधर सार्ध शतक' 'चर्चरी' 'गणधर सप्तति' और 'सन्देह दोहावली' मुख्य मानी जाती है। उनका स्वर्गगमन वी. स. 1681 ( वि. स. 1211-ई. स. 1154 ) में हुआ। वी. स. 1683 (वि. स. 1213-ई. स. 1156 ) में अञ्चल गच्छ की उत्पत्ति होना माना जाता है और इसी वर्ष मंत्री उदयन का पुत्र बाहड मंत्री ने शत्रुजय तीर्थ का चौदहवां उद्धार कराया था। वी. म. 1796 ( वि. म. 1236-ई. स. 1179 ) में सार्ध पूर्णामियक गच्छ की उत्पति हुई जिसके बाद वी. स. 1755 ( वि. स. 1285-ई. स. 1228 ) में प्रा. जगच्चन्द्र सूरि को मेवाड़ के राजा जैत्रसिंह ने उनकी कठिन प्रायबिल तपस्या से प्रभावित होकर उन्हें 'तपा' का विरुद प्रदान किया और तब से बड़गच्छ 'तपागच्छ' उपाधि से विख्यात हुआ जो अद्यावधि चला पा रहा है । प्रा. जगच्चन्द्र सूरि, एक महान क्रियोद्धारक हुए हैं और मंत्री वस्तुपाल तेजपाल ने उनके अनुयायी होकर गुजरात में सुविहित जैन धर्म का प्रसार करने में सहायता दी। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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