Book Title: Shraman Parampara Ki Ruprekha
Author(s): Jodhsinh Mehta
Publisher: Bhagwan Mahavir 2500 Vi Nirvan Samiti

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Page 26
________________ [ 12 ] और संप्रदायों में बंट गया है। श्वेताम्बरों में 84 गच्छ मुख्य माने जाते हैं किन्तु आज तपागच्छ, खरतरगच्छ, अंचलगच्छ, त्रिस्तुतिक, पार्श्वनाथगच्छ ग्रादि मूर्तिपूजक श्वेताम्बर गच्छ गिने जाते हैं । तपागच्छ की उत्पत्ति वी. सं. 1755 (वि. सं. 1285-ई. सं. 1228) में प्राचार्य जगच्चन्द्रसूरि से मानी जाती है । उदयपुर के पास पाहाड में 12 वर्ष प्रायंबिल की तपस्या करने से तत्कालीन राणा जैत्रसिंह ने उनको 'तपा' का विरुद्ध दिया। उसके पूर्व जैन श्रमण निर्गन्थ, कौटिक, बडगच्छ आदि नाम से पुकारे जाते थे। इन मुख्य गच्छों के अतिरिक्त कई पेटा गच्छ-पूरिणमा गच्छ, आगमिक गच्छ, चन्द्र गच्छ वी. सं. 1709 (वि. सं. 1239-~~-ई. सं. 1182) नागेन्द्र गच्छ वी. सं. 1558 (वि. सं. 1088 - ई. सं. 1031) निवृत्ति गच्छ वी. सं. 1939, (वि. सं. 1469. ई. सं. 1412) पार्श्वनाथ गच्छ, मलधारी गच्छ, रायसेनीय गच्छ वी. सं. 1928 (वि. सं. 1458 ई. सं. 1401), यशसूरि गच्छ वि. सं. 1712 (वि. सं. 1242--ई. सं. 1185) है। दिगम्बर मत के प्राचार्य श्रेष्ठ कुन्द-कुन्दा-चार्य से 'मूल संघ' की उत्पत्ति मानी जाती है किन्तु यह सन्देहास्पद बात है। पट्टावली के अनुसार, मूल संघ की स्थापना माघनन्दि ने की थी जो कुन्द-कुन्दा-चार्य के पहले हुए । थे । ऐसा प्रतीत होता है कि मूल संघ की स्थापना ईसा की दूसरी शताब्दी में हुई थी जब कि दिगम्बर श्वेताम्बर दो भेद पडे । मूल संघ से 'बलात्कार संघ' निकला और उसके अहंदबली और माघ नंदि दिग्गज मुनि हुए थे। इस गच्छ से 'सरस्वती गच्छ' की उत्पत्ति हुई जो श्रत (शास्त्र) की सम्यक् अाराधना करने से श्रेष्ठ निर्गन्थ साधक समझे जाते थे। वी. सं. 1927 (वि. सं. 1457- ई. सं. 1400) में पद्मनंदि महान् माने जाते हैं । द्राविड संघ की स्थापना वी. सं. 1005 (वि. सं 535 -- ई. स. 478) में वज्र-नंदि ने मद्रास देश में की थी उस समय दुविनीत राजा राज्य करता था । वी. स. 1223 वि. सं. 753-ई. सं. 696) में कुमार सेन ने काष्ट संघ काष्ट मय मूत्ति की पूजा अर्चना करने से नाम रखा । माथुर संघ मुनि राम सेन ने चलाया । जो दक्षिण के मदुरा से सम्बन्धित है । दिगम्बर मत में चेत्यवासी यतियों की तरह, भट्टारक परम्परा भी चली आती है जिनकी मुख्य गादी चित्रकूट Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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