Book Title: Shraman Parampara Ki Ruprekha
Author(s): Jodhsinh Mehta
Publisher: Bhagwan Mahavir 2500 Vi Nirvan Samiti

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Page 32
________________ [18 ] और राज्याभिषेक वी. सं. 215 (वि. सं. पू. 255-ई. स. पू. 312) माना जाता है और उनके पुत्र बिन्दुसार अमित्रकेतु का समय वी. सं. 23 5 ( वि.. सं. पू. 235-ई. स पू. 292 ) से वी. सं. 263 ( वि. सं. पू. 207-ई... स. पू. 264 ) तक गिना जाता है। 9. प्रार्य महागिरीजी ( वी सं. 215 से 235वि. सं. पू. 255 से वि सं. पू. 235, ई. स. पू. 312 से ई. स. पू. 292 ) ध्यानावस्था में रहते थे। 10 आर्य सुहस्ति सूरिजी ( वी. सं. 245 से 291 -वि. सं, पू. 255 से वि. सं. पू 179-ई. सं. पू. 282 से ई. स. पू 236 ) युग प्रधान प्राचार्य हो गये हैं जिनके समय में राजा संप्रति द्वारा ( वी. सं. 291292 से 323--वि. सं. पू 179-~178 से वि. सं. पू. 147-ई. स पू 236--235 से ई. स. 204 ) जो कि कुणाल के पुत्र और अशोक के पौत्र थे, जैन धर्म का विश्व में प्रचार हुआ ब्रह्मदेश, ग्रासाम, तिब्बत, अफगानिस्तान, ईरान, तुर्की, अरब आदि देशों में जैनधर्म की पताका फहराती थी। प्रार्य सुहस्ति सूरिजी राजा संप्रति के गुरु थे। राजा संप्रति ने सवा लाख नवीन जैन मन्दिर, सवा करोड़ जिन बिंब एवं 95000 धातु की जिन-प्रतिमाएं बनवाई और 36000 मन्दिरों का जीर्णोद्धार कराया तथा 700 दानशालाएँ निर्माण कराई। उन्होंने ईडरगढ़ पर प्रसिद्ध भगवान् शान्तिनाथ, 16 वें जैन तीर्थंकर के प्रसिद्ध मन्दिर को निर्मित करवाया जो प्रांज तीर्थ माना जाता है । उन्होंने सिद्धगिरि (पालीताणा), सम्मेतशिखर, शंखेश्वरजी, नांदिया, बामणवाडजी के तीर्थयात्रा संघ भी निकाले और संघपति, विख्यात हुए। कर्नल टाड ने उन्हें जैनियों का शाहजहाँ कहा है। इनके पिता कुरणाल, शांतजीवन व्यतीत करने के लिये ( तक्षशिला ) तक्षिला में रहते थे जहाँ उन्होंने जैन विहार बनाया जो तक्षिला के खंडहरों में आज भी कुरणाल स्तूप के तरीके से विख्यात है। करीब सब प्राचीन जैन मन्दिर या अज्ञात उत्पत्ति के स्मारक, प्रतिमाएँ जन भगवान पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास । भाग 1 मुनि श्री ज्ञानसुन्दरजी पृ. 2971 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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