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जैन संघ में निगोद व्याख्याता कालकाचार्य एक महानतम व्यक्तित्व लेकर आये। दूसरे प्राचार्य उमा स्वाति ने जैन धर्म का प्रमुख ग्रंथ साहित्य, संस्कृत भाषा में सृजन कर, उसका नाम तत्त्वार्थ सूत्र रखा । यह जैन धर्म का सार-ग्रंथ कहा जा सकता है। तत्वार्थ सूत्र को श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों, सामान्य रूप से श्रद्धास्पद स्वीकार करते हैं। श्वेताम्बर 'मतानुसार इसका काल वी सं. 300 (वि. स. पू. 170 ई स. पू. 227 ) माना जाता है और दिगम्बर मत से वी सं. 101 वि. सं. पू 369 ई. सं. पू. 426 में इनको होना कहा जाता है। श्री नाथूराम प्रेमी ने मैसूर नगर तालु 146 शिलालेख से इन्हें यापनीय संघ का सिद्ध किया है। यह यापनीय संघ, दिगम्बर और श्वेताम्बर से भिन्न था जिसका आज तक भी अनुयायी नहीं है। यह संघ वी सं 675 से वी. सं. 20 वीं शताब्दी ( वि. सं 205 से 16 वीं शताब्दी तक ई. स. 148 ई स की 15 वीं शताब्दी) तक चला ।। किसी समय, कर्नाटक और उसके आसपास प्रदेश में, यह प्रभावशाली रहा है, कटम्ब, राष्ट्रकूट और दूसरे वंश के राजाओं ने इस संघ के साधुओं को अनेक भूमि दानादि किये थे। आचार्य हरिभद्र ने इसका अपनी ललित विस्तार ग्रंथ में सम्मान पूर्वक उल्लेख किया है । यापनीय संघ के मुनि नग्न रहते थे, मोर पिच्छी रखते थे, पाणी तल भोजी थे, नग्न मूर्तियां पूजते थे, ये बातें दिगम्बर संप्रदाय जैसी हैं परन्तु साथ ही वे मानते थे कि स्त्रियों को उसी भव में मोक्ष प्राप्त हो सकता है, केवली भोजन करते हैं । आवश्यक छेद सूत्र, नियुक्ति और देश वैकालिक आदि ग्रंथों का पठन पाठन करते थे। इस कारण से वे श्वेताम्बरियों के समान थे।2
आर्य सुहस्ति सूरि के बाद, पट्टधर के रूप में गणधर दंश में प्राचार्य मुस्थित सूरि की परम्परा आज तक चली आ रही है । उनके पट्टधर प्राचार्य इन्द्र दिन्न सूरि और प्राचार्य इन्द्र दिन सूरि के पट्टधर आचार्य आर्य दिन्न 1. जैत परम्परा नो इतिहास (भाग 1 लो): (गुजराती) : लेखक मुनि श्री ___... दर्शन-ज्ञान-न्याय बिजयजी--त्रिपुट- महाराज पृ. 213 ...... ... ... ... 2. जैन साहित्य और इतिहास लेखक-पं. नाथूराम प्रेमी । पृ. 59
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