Book Title: Shraman Parampara Ki Ruprekha
Author(s): Jodhsinh Mehta
Publisher: Bhagwan Mahavir 2500 Vi Nirvan Samiti

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Page 40
________________ [26] 919 ई. स. 862) में प्राचारांग वृत्तिकार शीलकाचार्य हुए उन्होंने 54 महापुरुषों का महापुरुष चरित्र लिखा और आचारांग सूत्र कृतांग पर टीकाएं रची । प्रा. उद्योतन सूरि ने आबू की तलहटी के बीच टेलीग्राम के पास बड़ (वट) वृक्ष की छाया में आठ प्राचार्यों को दीक्षा दी। तब से वड़ गच्छ मशहर हया और उन्होंने, बाणभट्ट की कादम्बरी के संरण प्रांजुल तथा मंजुल 'कुवलय माला' प्राकृत का प्रथ रत्न की रचना की । इस ग्रन्थ की रचना जालोर में वी. स. 1305 (वि. स 835 ई.. म्र 778) में हुई ।। यह कथाग्रन्थ भारतीय साहित्य का प्रसिद्ध ग्रन्थ है। वी स 1432 (वि स. 962 ई म. 905) में प्राचार्य सिद्धर्षि ने 'उपमिति भव प्रपंच' नामक विशाल प्रतीकात्मक ग्रन्थ की रचना की जो भारतीय वाङमय में विशिष्ट स्थान रखता है, बल्कि विश्व साहित्य का पहला रूपक ग्रंथ है । यह ग्रन्थ भीनमाल (राजस्थान) में पूरा हुआ था ।2 वी. स. 1460 (वि. स 990 ई. स. 931) में दिगम्बर प्राचार्य देवसेन भट्टारक हुए जिन्होंने मल्लवादी के नंय-चक्र के आधार पर 'दर्शनसार' ग्रन्थ का निर्माण किया। उनका अस्तित्व काल वीर सवत की 15वीं शताब्दी (विक्रम की 10 वीं शताब्दी) का माना जाता है । वी. स. 1480 (वि. स 1010-ई. स. 953) में बड़ गच्छ के देव सूरि ने चन्द्रावती में जिन मन्दिर निर्माण कराने वाले कुकरण मंत्री को दीक्षा दी। चन्द्रावती जिसके खंडहर आबूरोड से 4 मील की दूरी पर है उस समय समृद्धिशाली जैन नगरी थी । वीर संवत् की 16वीं शताब्दी (वि. स की 11वीं मदी) में धनेश्वर मरि हए जो कि त्रिभुवन गिरि के अधिपति थे। उस समय से चन्द्र गच्छ का नाम 'राजगच्छ' पड़ा, वी सं. 1499 ( वि. सं 1029-ई. म 972 ) में मालवा के राजा मुज के माननीय पंडित धनपाल हुए जिन्होंने 'तिलक मंजरी' संस्कृत साहित्य की अमुल्यमयी-मणि-संस्कृत पाख्यायिका जैन सिद्धान्त के विचारों, तथ्यों और आदर्शों का अनुसरण कर लिखा, इसके अतिरिक्त उन्होंने 'देशी माला', 'ऋपभ पंचाशक', 'श्री महावीर स्तुति' 'महावीर उत्साह | Jainism in Rajasthan by Dr. K. C. jain, P. 161 2 Ibid. P. 112 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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