Book Title: Shraman Parampara Ki Ruprekha
Author(s): Jodhsinh Mehta
Publisher: Bhagwan Mahavir 2500 Vi Nirvan Samiti

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Page 38
________________ [24] इसी काल में वी. स. 9वीं या 10वीं सदी ( विक्रम की चौथी या पाँचवीं सदी ईस्वी सन् की भी चौथी या पाँचवीं सदी) में प्रा. सिद्धसेन दिवाकर हुए) । ये तर्क शास्त्र के मूल प्ररणेता अर्थात् प्राद्यजैन तार्किक थे । ये बड़ दार्शनिक थे । उन्होंने 'न्यायावतार' संस्कृत में ग्रन्थ रचा और उसके बाद 'सन्मति तर्क प्रकररण' जो कि जैन साहित्य की अमूल्य निधि है और अनेकान्त का उज्वलन्त प्रमाण शास्त्र है, लिखा । इनकी अन्य रचना 'द्वात्रिंशिका ' सर्वश्रेष्ठ और प्रति सुन्दर है । ये प्राद्य जैन कवि, स्तुतिकार और न्यायवादी माने जाते हैं । इनको भारतीय वाङ् मय की दिव्यतम ज्योति कहा जाता है । जैन धर्म का वीर संवत् की छठी शताब्दी अर्थात् विक्रम की पहली सदी (वी. सं. 470 से 570 - वि. सं. 1 से 100 ई. स. पू. 57 से ई. सं. 43 ) में जितना प्रचार हुआ उतना पहले नहीं हुआ । चन्द्रगुप्त, सम्प्रति, खारवेल के समय में जैन धर्म ने बहुत उन्नति की । साहित्य जगत में क्रान्तिकारी परिवर्तन हुए । सिद्धसेन दिवाकर ने जैन - दर्शन का समन्वयवादी दर्शन के रूप में, विश्व को अमूल्य उपहार किया । 1 वी. सं. 1001 से वी. सं. 2000 तक चित्तौड़ पर मान मोरी बी. स. 1010 (वि. सं. 540 ई. स. 483) में मेवाड़ के राजा अल्लट का होना माना जाता है, जो उदयपुर से 2 मोल आहाड़ में जाकर रहे । उनके वंशज 'आहाडिया' कहलाये जाने लगे । अल्लट के पूर्वज, भर्तृभट्ट के वंशज बाप्पा रावल थे । बाप्पा रावल ने को हरा कर वी. सं. 1036 (वि. सं. 566 - ई. स. का राज्य स्थापित किया था । 2 बाप्पा रावल के (वि. सं. 375 ई. सं. 318 ) में वल्लभी के भंग होने और वल्लभी के राजा प्राद्य शिलादित्य के गुहिल ( गुफा में जन्म होने से ) के नाम से 509 के लगभग ) मेवाड़ पूर्वज, बी. स . 845 पर मेवाड़ आये थे वंशज थे जिसमें से राजा गुहसेन - 'गहलोत' भी कहलाये । ये राजा 1. जैन धर्म का इतिहास - लेखक मुनि श्री सुशीलकुमार जी । पृ. 159 से 175 2. जैन परम्परा नो इतिहास (भाग 1 लो) लेखक त्रिपुटी महाराज । पृ. 388 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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