Book Title: Shraman Parampara Ki Ruprekha
Author(s): Jodhsinh Mehta
Publisher: Bhagwan Mahavir 2500 Vi Nirvan Samiti

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Page 29
________________ [ 15 ] जैन धर्म के अनुयायी माने जाते हैं। भगवान् महावीर और सुधर्मास्वामी के समय में क्षत्रिय कुड, ऋजु-बालुका, राज-गृही, पावापुरी, तीर्थ स्थल बने । मुधर्मास्वामी अपने 100 वर्ष का आयुष्य पूर्ण कर वीर निर्वाण से 20 वर्ष बाद (अर्थात् वि. स. पू. 450-ई-स. पू. 507) मोक्ष गये। वी. स. 84 (वि. स. पू. 386-ई. स. पू. 443 ई.) का बरली शिलालेख मिला है जिसमें शिवी जनपद की राजधानी 'मध्यामिका' का जिक्र पाया है। मध्यामिका चित्तौड़ से 7 मील दूर 'नगरी' आधुनिक नाम से विख्यात है और माध्यामिका तथा चित्रकुट ( चित्तौड़ ) दोनों जैन धर्म के प्राचीन केन्द्र रहे हैं । पार्श्वनाथ परम्परा के 29 वे पट्टधर प्रा० देव गुप्तसूरि ( पंचम वी. स. 827 से 840 वि. स. 357 से 370 ) के चतुर्मास के बाद, माघ शुक्ला 15 को एक विराट जैन सम्मेलन हुआ था, जिसमें कई श्रमण एकत्रित हुए थे और करीब 1 लाख जैन श्रावक श्राविकाएं थी। चित्तौड़ के राजा वैरसिंह भी सम्मिलित हुए थे। 2. श्री जम्बु स्वामी (वी. सं. 20 से 64-वि. सं. पू. 450 से 406 ई. स. पू. 507 ले सं. ई. पू. 463) दूसरे पट्टधर माने जाते हैं । सुधर्मास्वामी के उपदेश से, ये जम्बुकुमार, अाठ नवोढा विवाहित पत्नियों और विपुल धन (99 करोड़ सोना मोहर) छोड़ कर साधु बने । ये अंतिम केवली और अंतिम मोक्षगामी हुए हैं। वी. सं. 64 (वि. सं. पू. 406--ई. स. पू. 463) में मधुरा नगरी में इनका निर्वाण हुआ। ये चौदह पूर्वधर थे। उनके समय में, तत्कालीन राजा सम्राट श्रेणिक (बिंबसार) कोरिणक (अजातशत्रु), उदायी और श्रेणिक के पुत्र अभयकुमार विद्यमान थे। भद्रेश्वर तीर्थ कच्छ प्रदेश में तीर्थ स्थान माना जाने लगा। 3. श्री प्रभवस्वामी (वी.सं. 64 से 75-वि. सं.पू. 406 से 395--ई. सं. पू. 463 से 452) ने श्री जम्बुकुमार और उनकी आठ स्त्रियों के संवाद सुनकर, 499 चोरों के साथ जिनके ये सरदार थे, जैन धर्म में दीक्षा ग्रहण की। ये महान् युग प्रधान थे । त्याग, तपस्या और संयम के धोरी थे । उनके 1. मुनि ज्ञान सुन्दर : 'भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास' जिल्द 1 पृष्ठ 785 । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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