Book Title: Shraman Parampara Ki Ruprekha
Author(s): Jodhsinh Mehta
Publisher: Bhagwan Mahavir 2500 Vi Nirvan Samiti

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Page 20
________________ [6] वंश भारत में चला ।। युगलियों को उपदेश देने के बाद, ऋषभदेव प्रभु ने दीक्षा ग्रहण की अर्थात् साधु बने । फाल्गुन कृष्णा 11 को पुरिमातल आधुनिक इलाहाबाद में, प्रभु को अनन्त केवल ज्ञान और केवल दर्शन सम्पन्न हुआ और माघ कृष्णा 13 के दिन, अष्टापद पर्वत पर 1000 साधुओं के साथ भगवान ऋषभदेव को निर्वाण प्राप्त हुा । भगवान ऋषभदेव के निर्वाण से 42 हजार 3 वर्ष माढ़े आठ माम अधिक इतना काल कम, एक मागरोपम कोटा कोटी बीतने पर, भगवान महावीर ने निर्वाण पद पाया । इस मध्यावधि काल में 22 तीर्थकुर 2. श्री अजितनाथ, 3. श्री सम्भवनाथ, 4. श्री अभिनन्दन, 15. श्री सुमतिनाथ, 6. श्री पद्मप्रभु, 7. श्री सुपार्श्वनाथ, 8. श्री चन्द्रप्रभु, 9. श्री सुविधिनाथ, 10. श्री शीतलनाथ, 11. श्री श्रेयांसनाथ, 12. श्री वासुपूज्य,13. श्री विमलनाथ, 14. श्री अनन्तनाथ, 15. श्री धर्मनाथ, 16. श्री शान्तिनाथ, 17. श्री कुन्युनाथ, 38. श्री अरनाथ, 19. श्री मल्लिनाथ, 20. श्री मुनिसुव्रत, 21. श्री नमिनाथ, 22. श्री नेमिनाथ, 23. श्री पार्वनाथ हुए जिनका विस्तार से वर्णन, कालिकाल-सर्वज्ञ आचार्य श्री हेमचन्द्र - मूरिजी ने अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ 'त्रिषष्टि-शलाका पुरुष-चरित्र' में किया है। 2 से लेकर 21 तीर्थङ्करों का काल प्रागैतिहासिक माना जाता है । ऐतिहासिक काल : 22 वें तीर्थकर भगवान् नेमिनाथ का जन्म श्रावण शुक्ला 5 प्रागरा के पास शौरीपुर में हुआ था; वह बालब्रह्मचारी थे। जब इनका विवाह उग्रसेन राजा की पुत्री राजुलमति के साथ होने वाला था तो हरिन पशुओं की पुकार सुनकर करूणा हो गये और सारथी को कह कर विवाह के रथ को फिरवा कर प्रव्रज्या ( दीक्षा ) ग्रहण कर ली-श्रावण शुक्ला 6 को, इस अव-सर्पिणी काल में दुषमा सुषमा चौथा पारा बहुत बीत जाने पर गिरनार पर्वत पर प्रभु प्राषाढ शुक्सा ८ को मोक्ष पधारे। इनकी कुल आयु1000 1. श्री हिन्दी जैन कल्प सूत्र-प्रकाशक श्री आत्मानन्द जैन महासभा __ पंजाब जालन्धर शहर, प्रथम संस्करण, सन् 1948 पान! 116 ! 2. वही, पाना 127. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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