Book Title: Shraman Parampara Ki Ruprekha
Author(s): Jodhsinh Mehta
Publisher: Bhagwan Mahavir 2500 Vi Nirvan Samiti

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Page 18
________________ [4] प्रत्येक उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी काल में 24 तीर्थङ्कर, 12 चक्रवर्ती, 9 वासुदेव, 9 प्रतिवासुदेव एवं 9 बलदेव होते हैं । इस अवसर्पिणी काल में जो 24 तीर्थङ्कर हो गये हैं उनमें प्रथम आदिदेव भगवान् ऋषभदेव और अन्तिम भगवान महावीर पाते हैं जिनके निर्वाण को 2500 वर्ष हो गये हैं। इसके पहले उत्सर्पिणी काल के 24 तीर्थकर हुए उनमें पहले तीर्थंकर का नाम केवल ज्ञानी और अन्तिम का नाम सम्प्रति था। भविष्य की उत्सपिणी में प्रथम तीर्थङ्कर, राजा श्रेणिक (बिबसार) का जीव होगा जो श्री पद्मनाभ स्वामी के नाम से प्रख्यात होंगे ।। भविष्य को सत्य मानते हुए 1. भगवान पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास भाग 1-मुनि श्री ज्ञानसुन्दर जी पृ. 18 से 621 । पल्योपम यह शब्द जैन शास्त्र का है, पल्य+उपम - पल्योपम । पल्य यानी कुआ। जिसको कुए की उपमा देने में आवे उसको पल्योपम कहने में आता है। इस वस्तु को समझाने में एक कुए का उदाहरण (दृष्टान्त) देने में आता है वह इस प्रकार है एक योजन लम्बा, चौड़ा और गहरा ऐसा एक कुना होवे अर्थात् चार गउ लम्बा, चार गउ चौड़ा और चार गउ गहरा ऐसा एक कुत्रा होवे । उसमें देवकुरु, उत्तरकुरु प्रदेश के प्रायु से सात दिवसीय युगलिक मनुष्यों के मुडाये, हुए मस्तक माथे का एक से सात दिवस का एक-एक बाल के असंख्याते अति सूक्ष्म टुकड़े करके हँस-स करके कुए में ऐसी रीति से भरने में प्रावे कि इस भरे हुए कुए पर होकर चक्रवर्ती का छियानवे करोड़ पैदल लश्कर अर्थात् सारा सेन्य घूम जावे तो भी एक बाल जितनी इस कुए में जगह नहीं दीखे . । ऐसे इस कुए में से सौ सौ वर्ष में एक-एक बाल निकालते हुए और कुत्रा बाल से सर्वथा खाली होते हुए जो समय बीते, उसको 'एक पल्योपम' कहते हैं। ___ इस प्रकार असंख्यात वर्षों का एक पल्यापम होता है। करोड़ से करोड़ संख्या से गुणा करने से जो संख्या आवे उसको कोटा कोटी कहने में आता है। ऐसे दस कोटा कोटी पल्योपम का एक सागरोपम होता है और दस कोटा कोटी सागरोपम का एक उत्सर्पिणी अथवा एक अवसर्पिणी काल होता है और उत्सर्पिणी तथा अवसर्पिणी दोनों काल को जोड़ने पर, अर्थात् 20 कोटा कोटी सागरोपम का एक काल चक्र होता है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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