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नम्र-निवेदन
श्रमण संस्कृति का हमारे इतिहास में एक गौरवपूर्ण स्थान है । आज हम जिसे जैन धर्म के नाम से पुकारते हैं वह इसी श्रमण धर्म का विकसित रूप है । श्रमण निर्ग्रन्थ, अहंत आदि इसी धर्म के प्राचीन नाम हैं । इस धर्म की परम्परा बहुत प्राचीन है। भगवान् ऋषभदेव से लगाकर श्रमण भगवान महावीर तक इसका विकास हुआ है । भगवान ऋषभदेव श्रमण संस्कृति के प्रथम उद्घोषक माने जाते हैं। उनका समय इतिहास की दृष्टि से आदि मानव सभ्यता का प्रारम्भिक काल था। इतिहास बताता है कि इस श्रमण परम्परा में न केवल धर्म और दर्शन का ही प्रचार हुअा वरम् भाषा, साहित्य, कला आदि का भी विकास हुआ। इस प्रकार भगवान ऋषभदेव से लेकर आज तक के बहुमुखी विकास को प्राप्त इस श्रमण संस्कृति को एक लघु पुस्तिका में प्रस्तुत करना सर्वथा असम्भव मानते हुए भी भगवान महावीर 2500 वाँ निर्वाण महोत्सव समिति प्राबू पर्वत ने समिति के मंत्री, अनुभवी लेखक विद्वान् और श्रमण संस्कृति के ज्ञाता श्री जोधसिंह मेहता के माध्यम से यह छोटा सा प्रयास किया है. जो पाठकों के सामने है । इस समिति ने माबू पर्वत स्थित रमणीय नक्खी उद्यान में महावीर स्तम्भ लगवाकर स्थानीय नगरपालिका पुस्तकालय में महावीर कक्ष बनवाकर तथा अन्य छोटे-मोटे सार्वजनिक कार्य करवाकर इस महोत्सव को मनाया। यह प्रकाशन इसकी अन्तिम भेंट है। विद्वान् लेखक ने श्रमण परम्परा की रूपरेखा में जो सामग्री प्रस्तुत की है वह पाठकों के लिये प्रेरणादायक सिद्ध होगी, ऐसी हमें प्राशा है। समिति ने इस पुस्तक का सांकेतिक मूल्य 1 एक रुपया मात्र रक्खा है जिसकी प्राय से भगवान महावीर स्तम्भ का रखरखाव व संरक्षण किया जावेगा। वह राशि सेठ कल्याणजी परमानन्दजी पेढी देलवाड़ा में जमा रहेगी, जो प्रावश्यकतानुसार संरक्षण हेतु खर्च की जा सकेगी।
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