Book Title: Shraman Parampara Ki Ruprekha Author(s): Jodhsinh Mehta Publisher: Bhagwan Mahavir 2500 Vi Nirvan Samiti View full book textPage 9
________________ प्रस्तावना कुछ वर्षों पूर्व, स्व. मुनि श्री ज्ञानसुन्दरजी विरचित 'भगवान् पार्श्व. नाथ की परम्परो' का इतिहास पढ़ा था जिसमें भगवान पार्श्वनाथ की परम्परा के श्रमणों के समय में, जैन धर्म के विकास का विविध विधाओं में जो अभ्घुदय हुआ. उसका विद्वान् मुनिवर्य ने, अति कठिन परिश्रम करके सविस्तार विवरण दिया है। इस ग्रन्थ का दोनों भागों का गहन पठन पाठन और अध्ययन करने के पश्चात्, मेरे मन में भगवान महावीर की परम्परा का इतिहास लिखने की भावना जागृत हुई और तदनन्तर, इस सम्बन्ध में कुछ पुस्तके देखी, फिर भी, इस विषय पर प्रचुर सामग्री उपलब्ध होने पर, विशाल प्रन्थ की रचना करना सम्भव न हो सका। भगवान महावीर का 2500 वां निर्वाण महोत्सव समीप आने पर, यह भावना पुन: प्रबल हो उठी किन्तु प्रार्थिक संबल न मिलने के कारण, कुछ नहीं हो सका। इस पुनीत वर्ष में यह निश्चय किया कि भगवान महावीर के 2500 वाँ निर्वाण महोत्सव के उपलक्ष में श्रद्धाञ्जलि स्वरूप, भगवान महावीर के निर्वाण के पूर्व और १श्चात्, जो श्रमण संस्कृति का प्रवाह रहा है, उसका सूक्ष्मातिसूक्ष्म विवेचन कर, श्रमण परम्परा की रूपरेखा ही प्रस्तुत की जावे। माउण्ट आबू पर संयोजित भमवान महावीर की 2500 वीं निर्वाण महोत्सव समिति ने, इस विचार को पसन्द कर, इस लघु पुस्तक को प्रकाशित करने का निर्णय लिया जो पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है। श्रमण संस्कृति प्रति प्राचीन है । जैन धर्म की मान्यतानुसार प्रादि में कितने ही जैन श्रमण तीर्थकर, प्राचार्य, उपाध्याय, साधु और साध्वी एवं श्रमणोपासक श्रावक और श्राविकाएं हो चुके हैं और प्रागे भी अनन्त ऐसे होयेंगे। श्रमण-संस्कृति तप-त्याग प्रधान संस्कृति है जो मोक्ष साधना में उपयोगी है । श्रमणों का जीवन विशुद्ध, अहिंसात्मक, तपोमय और लोकोपकारी होता है। वे न केवल अपनी आत्मा का उद्धार करते हैं, परन्तु समस्त प्राणीमात्र को अपने उपदेश और उदाहरण से, सिद्ध अवस्था प्राप्त कराने में सहायक होते हैं। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.comPage Navigation
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