Book Title: Shraman Parampara Ki Ruprekha Author(s): Jodhsinh Mehta Publisher: Bhagwan Mahavir 2500 Vi Nirvan Samiti View full book textPage 8
________________ [ vi ] वर्तमान युग में सामाजिक एवं धार्मिक क्षेत्र में अनेक समस्याएं हैं। श्रमण परम्परा का इतिहास ही नित नई समस्याओं से जूझने का रहा है। मतः यह नितान्त आवश्यक हो गया है कि श्रमण संस्कृति की प्राचार मीमांसा, जान मीमांसा माज के युग में किस प्रकार अधिक सार्थक हो सकती है, इस पर गहराई से विचार किया जाय । वर्तमान में जैन परम्परा के उपासकों को क्या करणीय है, जिससे समाज और देश के विकास में उनका योगदान वर्णनीय हो सके, इस पर भी व्यावहारिक रूप से सोचने की आवश्यकता है। श्री मेहताजी ने अपनी इस पुस्तक में देश भर में 2500 वें निर्वाण वर्ष में किये गये कार्यों का विहंगमावलोकन भी किया है। उसका यही प्रतिपाद्य है कि हम पात्मलोचन कर पाने का मार्ग निर्धारित कर सकें। डॉ० कमलचन्द सोगानी रीडर एवं अध्यक्ष दर्शन विभाग, उदयपुर विश्वविद्यालय, उदयपुर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.comPage Navigation
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