Book Title: Shraman Parampara Ki Ruprekha Author(s): Jodhsinh Mehta Publisher: Bhagwan Mahavir 2500 Vi Nirvan Samiti View full book textPage 6
________________ [ iv ] पश्चिमीय चित्रकला के नमूने सुरक्षित हैं । बड़ौदा में ओघनियुक्ति की ताड़पत्रीय प्रति में 16 विद्यादेवियों के चित्र बने हुए हैं। इस तरह के अन्य दुर्लभ चित्र भी ताड़पत्रों के ग्रन्थों में उपलब्ध हैं । इनके चित्रों को जैन कला, गुजराती शैली, अपभ्रंश शैली, जैन शैली आदि नाम दिये गये हैं । 14वीं शताब्दी के लगभग कागज और वस्त्रों पर भी जैन चित्र उपलब्ध होते हैं । कल्पसूत्र, कालकाचार्य कथा, सुपासरणाहचरियं यशोधरचरित्र, सुगन्ध दशमी कथा आदि अनेक ग्रन्थों की सचित्र प्रतियाँ उपलब्ध हुई हैं, जो भारतीय चित्रकला की बहुमूल्य निधि हैं । उन सबकी सुरक्षा की सुव्यवस्था जितनी आवश्यक है, उतनी जरूरी बात यह भी है कि भारतीय कला के मूल्यांकन व इतिहास लेखन में इन सब सामग्री का गहन अध्ययन के बाद उपयोग भी होना चाहिये । तभी भारत का सांस्कृतिक इतिहास सर्वाङ्गीण और प्रामाणिक हो सकेगा । , श्रीमान जोधसिंहजी मेहता, 'रोवर स्काउटिंग', 'आदिवासी भील', 'चित्तौड़गढ़', 'प्राबू टू उदयपुर', 'प्रताप दी पेट्रीयट' और 'आबू-दिग्दर्शन' हिन्दी और अंग्रेजी आदि पुस्तकों के लेखक हैं । जैन साहित्य मौर कला के प्रचार प्रसार के प्रति उनकी विशेष अभिरुचि है । उसी का परिणाम है प्रस्तुत पुस्तक 'श्रमण परम्परा की रूपरेखा' इतने सीमित पृष्ठों में उन्होंने जो सामग्री दी है: उससे श्रमण परम्परा के कई पक्षों की जानकारी पाठक को प्राप्त होगी । प्राशा है, श्री मेहता सा. की अन्य पुस्तकों की भाँति यह पुस्तक भी समाज और सुधी जनों में समादृत होगी । गुरु नानक जयन्ती, 1977 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat - डॉ. प्रेमसुमन जैन सहायक प्रोफेसर प्राकृत संस्कृत विभाग, उदयपुर विश्वविद्यालय www.umaragyanbhandar.comPage Navigation
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