Book Title: Shraman Parampara Ki Ruprekha
Author(s): Jodhsinh Mehta
Publisher: Bhagwan Mahavir 2500 Vi Nirvan Samiti

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Page 5
________________ [ iii ] उनके अध्ययन के बिना आज रामायण और महाभारत का अध्ययन पूरा नहीं माना जाता । यही स्थिति भारतीय गणित, ज्योतिष, आयुर्वेद, व्याकरण और कोष आदि के साहित्य के सम्बन्ध में भी है। इस दृष्टि से जैन साहित्य का अध्ययन-अनुसंधान होना अभी अपेक्षित है। श्रमण परम्परा में भारतीय कलाओं का संरक्षण और संवर्धन भी प्राचीन समय से होता रहा है। भारतीय मूत्तिकला के मर्मज्ञ इस बात को स्वीकार करते हैं कि अब तक उपलब्ध सबसे प्राचीन मूत्ति जैन तीर्थंकर की ही है । खारवेल के शिलालेख से यह बात प्रमाणित होती है कि कुषाण युग में जिन विम्ब का अच्छा प्रचलन था । मथुरा के कंकाली टीले से प्राप्त मूत्तिकला में जैन कला का ही प्राधान्य है। गुप्तकाल की कला के अनेक निदर्शन देवगढ़ की जैन कला में उपलब्ध हैं। मध्ययुग में श्रवणवेलगोला, खजुराही, देलवाड़ा, राणकपुर, बेलुर आदि स्थानों की जैन मूत्ति-कला अपनी कलात्मक और सुन्दरता के लिये विश्व-विख्यात है, केवल मूत्ति-कला के क्षेत्र में ही नहीं, मन्दिर-स्थापत्य कला की दृष्टि से भी जैन मन्दिर अद्वितीय हैं । सुदूर) दुर्गम वनों और दुलंध्य पर्वतों पर जैन मन्दिरों के निर्माण से भारतीय कला' का संरक्षण ही नहीं हुआ, अपितु देश के विभिन्न भागों को सौन्दर्य प्रदान भी श्रमण परम्परा के द्वारा हुआ है । आज इस सांस्कृतिक-थाती की राष्ट्रीय स्तर पर सुरक्षा और प्रचार प्रसार की आवश्यकता है।। भारतीय चित्रकला के विकास में श्रमण परम्परा का अपूर्व योगदान है । जैन साहित्य में भित्ति चित्रों के सम्बन्ध में विविध और विस्तृत जानकारी उपलब्ध है । अजन्ता की चित्रकला के समकालीन तंजोर के समीप 'सित्तनवासल' की भित्ति-चित्रकला प्राज भी सुरक्षित है, जिसे एक जैन राजा ने बनाया था। यह स्थान 'सिद्धानां वासः' का अपभ्रंश प्रतीत होता है। एलोरा के कैलाश मन्दिर, तिरुमलाई के जैन मन्दिर तथा श्रवणवेलगोला के जैन मठ के भित्ति-चित्र भी प्राचीन चित्रकला के अद्भुत नमूने हैं । जैन ग्रन्थ भण्डारों में ताड़पत्रीय एवं कागज पर बने चित्र भी अपनी कलात्मकता के लिए विश्वविख्यात हैं। मूडबिद्री में षट्खंडागम की सचित्र ताड़पत्रीय प्रतियाँ सुरक्षित हैं। पाटन में निशीथचूरिण की ताडपत्रीय प्रति में Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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