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(८) आपका निःस्पृह सरल शान्त स्वभाव होने से जगत के ' गच्छगच्छान्तर-मत्तमत्तान्तरके झगडे. तो आपसे हजार हाथ दूरे ही रहते थे. जैसे आप ज्ञानमें उचकोटीके विद्वान थे वेसे ही कविता करने में भी उच्चकोटीके कवि भी थे आपने अनेक स्तवनों, सम्झायों, चैत्यवन्दनों, स्तुतियों, कल्प रत्नाकरी टीका और विनति शतकादि रचके जैन समाजपर परमोपकार कीया था.
.. आपको निवृत्तिस्थान अधिक प्रसन्न था जो श्रीमदुपकेश गच्छाधिपति श्री रत्नप्रभसूरीश्वरजी महाराजने उपकेशपट्टन (भोशीयों) में ३८४००० राजपुतोकों प्रतिबोध दे जैन बनाया. प्रथम ही भोसवंस स्थापन कीया था. उन मोशीयों तीर्थपर आपश्रीने चतुर्मास का अलभ्य लाभ प्राप्त कीया जैसे मुनि श्री ज्ञानसुन्दरजीको ढुंढकमाल से बधाके संवेगी दीक्षा दे उपकेश गच्छका उद्धार करवाया था फीर दोनों मुनिवरोंने इस प्राचीन तीर्थके जीर्णोद्धारमें मदद कर वहांपर जैन पाठक शाला, बोडींग, श्री रत्नप्रभाकर शान मंडार, जैन लायब्रेरी स्थापन करी थी और भी आपको ज्ञानका बडा ही प्रेम था. आपश्रीके उपदेश द्वारा फलोधी में श्री रत्नप्रभाकर ज्ञानपुष्पमाला नामकि संस्था स्थापित हुन थी. मालश्रीने अपने पवित्र जीवनमें शासन सेवा बहुत ही करी थी. केइ जगह जीर्णोद्धार पाठशालावोंके लिये उपदेशदीया था जिनोंकि