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दृष्टिकांड
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नहीं है । उपपरीक्षा में अधिकतर प्रत्यक्ष परीक्षक की योग्यता परीक्ष्य से अल्प ही होती है।
एक आदमी किसी ग्रंथ की परीक्षा करते समय सिर्फ इस बात का विचार करता है कि वह अमुक शास्त्र से मिलता है कि नहीं ? इस परीक्षा में परीक्षक की विशेष योग्यता का विशेष मूल्य नही है। उसे तो अमुक शास्त्र से मिलानभर करना है । वहुतसी गणित की पुस्तको में विद्यार्थियों के लिये अभ्यासार्थ कुछ प्रश्न दिये जाते है और पुस्तक के अंत में उनके उत्तर लिख दिये जाते हैं । विद्यार्थी उस उत्तर से मिलाकर अपने सवाल की जाच करता है। । पुस्तक के अन्त मे लिखे उत्तर से उसका उत्तर मिलजाता है तो अपने उत्तर को ठीक समझता है नही तो गलत समझता है। ऐसी विद्यार्थी अपने sara ar arrier है । इसी प्रकार जिस परीक्षा में परीक्षक की योग्यता प्रमाण नहीं होती उसे उपपरीक्षा कहते है। एसी उपपरीक्षा मे छोटा आदमी भी बड़े आदमी की परीक्षा ले सकता है । उपपरीक्षक बनने से कोई परीक्ष्य से बड़ा नहीं कहला सकता है | है ! यह होस कता है कि वह अपनी योग्यता आदि से बड़ा भी हो। पर उसका वड़ापन उपपरीक्षकता पर निर्भर नहीं हैं ।
५- विनयपरीक्षा ( नायं दिजो ) परीक्ष्य को काफी महत्व देते हुए विनयपूर्ण सन विनयपूर्ण वचन और शिष्टाचार के साथ जो परीक्षा कोजाती है उसे विनयपरीक्षा कहते हैं । इस परीक्षा में परीक्ष्य की सफलता में परीक्षक कहता Tir aantara aaगई, असफलता में कहता है श्रापकी बात नहीं जची । परीक्ष्य-परी तक के सम्बन्ध के अनुसार भाषा में काफी विनय छलकता है । जैसे- परीक्ष्य की बात न जचने पर वह कहता है
अभी तक आपकी बात जच नहीं पाई। अभी तक में समझ नहीं सका । आपने तो see ठीक ही निर्णय किया होगा पर मेरी मन्द बुद्धि मे यह बात अभी तक
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भाई नहीं है ।
मतलब यह कि विनयपरीक्षा मे परीक्षक अपने को स्पष्ट रूप मे छोटा मानलेता है, फिर भी परीक्षा करता है। पर जब उसकी दृष्टिसे बात ठीक नहीं होती तब वह परीक्ष्य की अयो ग्यता या असत्यता का उल्लेख नही करता किंतु अपनी अयोग्यता के शब्दों में उल्लेख करता है । वह यह नहीं कहता कि 'मैं यह बात उचित नहीं सममता' वह अनुचित समझने पर भी यही कहेगा कि 'मेरी समझ में यह बात आई नहीं' ।
कोई बात किसी युग अच्छी थी पर अच्छी नहीं है, ऐसी हालत मे यह कहना कि यद्यपि जमाना बदलजाने से आज इस बात का उपयोग नहीं है पर पुराने जमाने में यह उनकी व्यवस्थापकता को यह भी विनय परीक्षा व्यवस्था बहुत अच्छी थी, ठीक थी, धन्य है। है। इसमे नम्रता प्रशंसा के साथ किसी बात की जाचकर उसे अस्वीकार किया जाता है।
इसप्रकार यह विनयपरीक्षा महान से महान, व्यक्ति की भी की जा सकती है, करना भी चाहिये। ऐसी परीक्षा से किसी का अविनय नहीं होता । हूा । जिस व्यक्ति के साथ हमारा सम्बन्ध गुरुशिष्य आदि का हो उसकी बात न अचने पर विनयपरीक्षा के शब्द न कहकर आलोचन परीक्षा सरीखे शब्द कहना उसका अपमान कहा. जासकता है। ऐसा अपमान न करना चाहिये, पर उचित अवसर पर उपयोगिता का ध्यान रख कर विनयपरीक्षा अवश्य करना चाहिये ।
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परीक्षा के इन प्रकारो पर व्यान देने साफ मालूम होता है कि परीक्षा करने से Je कारों का या महान से महान व्यक्ति का अनुभ नहीं होता । हा ! उसे अपने व्यक्तित्व येव परिस्थिति श्रादि का विचार करके आलो परीक्षा उपपरीक्षा या विनयपरीक्षा क चाहिये।
रहगई बात यह कि ऐसे महान व्यक्ति के सामने अपने व्यक्तित्व को महत्ता कैसे जासकती है ? और यपने को महत्ता दिये
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