Book Title: Satyamrut Drhsuti Kand
Author(s): Satya Samaj Sansthapak
Publisher: Satyashram Vardha

View full book text
Previous | Next

Page 219
________________ L हाटकाड दिलसे तारीफ करते हैं तो मनुष्य होकर भी पशु हैं। परिस्थिति से विवश होकर हमें कभी कभी इच्छा के विरुद्ध काम करना पड़ता है। पर प्रेरित जीवन का यह प्रकरण इस लिये नहीं है कि तुम्हारे अकार्यो की जांच करे। यहां तो यह बताया जाता है कि तुम भले काम किसकी प्रेरणा से करते हो ? इससे तुम्हारी समझदारी और संयम की जांच होती है। किसी के दबाने से जब कोई अनुचित कार्य करना है तब उसकी निर्बलता का विशेष परिचय मिलता है । यद्यपि निर्वलता में भी अमुक अश में असंयम हैं पर उसमें मुख्यता निता की है। पशुता का सम्बन्ध निर्जलता से नहीं किन्तु ज्ञान और असंयम से है । ३ स्वार्थप्रेरित (लुग्भो गेयार) -स्वार्थों वह मनुष्य है जिसमें समझदारी आई है और जो दीर्घदृष्टि से अपने स्वार्थ की रक्षा की बात समझता है। दंड-प्रेरित नौकर तब काम करेगा जब उसको फटकारा जायगा, गाली दी जायगी, पर स्वार्थप्रेरित नौकर यह सोचेना कि अगर मैं मालिक को तुम न करूँगा, उनको बोलने को जगह न खखूंगा, उनकी इच्छा से अधिक काम करूंगा तो मेरी नौकरी स्थायी होगी, तरक्की होगी और आवश्यकता पर मेरे साथ रियायत की जायगी । इस प्रकार वह भविष्य के स्वार्थ पर विचार करके कर्तव्य में तत्पर रहता है। दंडप्रेरित की अपेक्षा वह मालिक को अधिक आराम पहुँFear है और स्वयं भी अधिक निश्चिन्त और प्रसन्न रहता है, इसका अपमान भी कम होता है एक दूकानदार इसलिये कम नहीं तौलता कि मैं पुलिस में पकड़ा जाऊंगा तो वह दंडप्रेरित । पर दूसरा इसलिये कम नहीं तौलता कि इस सेकी साख मारी जायगी, लोग विश्वास नहीं करेंगे, दुकान कम चलेगी आदि, तो वह स्वार्थप्रेरित है। द'- प्रेरित की अपेक्षा स्वार्थप्रेरित वेई मन कम करेगा इसलिये यह श्रेष्ठ है। बहुत से लोग भीतर से संयमी न होने पर भी व्यापार में ८२२१ ईमानदारी का परिचय देते हैं जिससे साख बनी रहे इससे वे स्वयं भी लाभ उठाते हैं और दूसरों को भी निश्चिन्त बनाते हैं इसलिये दड-रेरित की अपेक्षा स्वार्थप्रेरित श्रेष्ठ है। 1 एक देश में दो जातियों हैं वे नाममात्र के कारण से आपस में लड़ती हैं, लड़ाई तभी रुकती है जब कोई तीसरी शक्ति या सरकार डौंडे के बल पर उन्हें रोक रखती है। ऐसी जातियों में दडप्रेरितता अधिक होने से कहना चाहिये कि पशुता अधिक है। पर जब वे यह विचार करती हैं कि दोनों की लडाई से दोनों का ही नुकसान है। हमारे पांच आदमी मरे और उसके बदले में दूसरों के हम दस आदमी भी मारें तो इससे हमारे पाच जी न उठेंगे और आपस में लड़ने से कोई भी तीसरी शक्ति हम दोनों को गुलाम बनी लेगी। इस प्रकार के विचार से वे दोनों जातियाँ मिलकर रहें तो यह उनकी स्वार्थप्रेरितता होगी जो कि द उप्रेरितता की अपेक्षा श्रेष्ठ है। इसमें पशुता नहीं है और मनुष्यताका अंश श्रागया है। L ४ संस्काररेरित ( ढोगे मार ) - संस्कारप्रेरित वह मनुष्य है जिसके दिलपर अच्छे कार्यों की छाप ऐसी मजबूत पड़ गई है कि अच्छे कार्य को भंग करने का विचार ही उसके मन में नहीं श्राता। अगर कभी ऐसा मौका आता भी है तो उसका हृदय रोने लगता है, बहिन भाई के सम्बन्ध की पवित्रता संस्काररेरितता का रूप है। स्वार्थप्रेरितता की अपेक्षा संस्काररेरितता इस लिये श्रेष्ठ है कि संस्कारप्रेरित मनुष्य स्वार्थ को धक्का लगने पर भी अपने सत्कर्तव्य को नहीं भूलता - अन्याय करने को तैयार नहीं होता I वे किसी देश में अगर हो जातियाँ हैं और समान स्वार्थ के कारण मिल गई हैं तो दडप्रेरित की अपेक्षा यह सम्मिलन अच्छा होनेपर भी यह नहीं कहा जा सकता कि उसका वह सम्मिलन स्थायी है। किसी भी समय कोई तीसरी शक्ति उनमें से किसी एक का बलिदान करके -

Loading...

Page Navigation
1 ... 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259