Book Title: Satyamrut Drhsuti Kand
Author(s): Satya Samaj Sansthapak
Publisher: Satyashram Vardha

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Page 243
________________ दृष्टिकांड [२४५ ] यकाः विनश्यन्ति नश्यन्ति बहुनायका.) नर नारी निकल नायगा । योग्यतानुसार कहीं नारी ऊपर की समानता से हमारे घर अनायक या बहु. की ईंट होगी कहीं नर, इस प्रकार न्याय की नायक वनकर नष्ट हो जायेंगे। ईट पर ईट रक्षा भी होगी और व्यवस्था और समभाव बना रखने से घर बनता है, ई' को बराबरी से ईट रहेगा। रखने से सैदान तो ईटो से भर जायगा पर घर सुव्यवस्था का अधिकाश श्रेय दोनो की न बनेगा। एकत्व भावना को ही मिल सकता है वह न हो उत्तर---अनायक वहनायक की वात वहीं तो नियम सूचनाएँ सभी व्यर्थ जॉयेंगी। खैर, ठीक जमती है वहा व्यक्रियो के व्यक्तित्व बिल- दाम्पत्य की समस्या मानव जीवन की महान से कुल अलग अलग होते है। पति पत्नी दो राणी महान समस्या है। इस पर थोड़ा बहुत विचार होनेपर भी अकेले अकेले वे इतने अधूरे हैं और व्यवहार कार्ड में किया जायगा। यहा तो एकउनमें मिलन इतना आवश्यक है कि उन दोनो लिंगी जीवन मे नरत्व या नारीरव के अमुक गुणों का व्यक्तित्व प्रतिस्पर्धा का कारण कठिनता स को अपनाकर जीवन को कुछ सार्थक करने की ही बनेगा। उनकी स्वाभाविक इच्छा एक दूसरे बात है। में विलीन होने की, एक दूसरे को खुश रखने की ३ उभयलिंगी जीवन ( टुमनंगिर जिवो)और एक दूसरे के अनुयायी बनन की होती है जिस मनुष्य में नरत्व और नारीत्व के गुण काफी तभी दाम्पत्य सफल और सुखकर होता है । इस- मात्रा में हैं वह उभयलिंगी मनुष्य (नर या नारी) लिये अनायक बहुनायक का प्रश्न वहा उठना ही है। प्रत्येक मनुष्य को गुण मे और कार्यों में न चाहिये 'फिर भी हो सकता है कि कहीं पर उभयलिंगी होना चाहिय । बहुत से मनुष्य इतने दाम्पत्य इतना अच्छा न हो, तो वहा के लिये ... भावुक होते हैं कि बुद्धि की पवाह ही नहीं करते, निम्नलिखित सूचनाओं पर ध्यान देना चाहिये वे एकलिंगी नारीत्ववान मनुष्य अपनी भावुकता योग्यतानुसार कार्य का विभाग कर लेना से जगत को जहा कुछ देते हैं वहा बुद्धि-हीनता और अपने कार्यक्षेत्र में ही अपनी बात का के कारण जगत का काफी नुकसान कर जाते हैं। अधिक मूल्य लगाना। इसी प्रकार बहुत से मनुष्य जीवन भर अवसर -अपने क्षेत्र की स्वतन्त्रता का उपयोग अनवसर देखे विना बुद्धि को कसरत दिखात ऐसा न करना जिससे दूसरे के कार्यक्षेत्र की परे रहते हैं उनमें भावुकता होती ही नहीं। वे अपनी शानी बढ़ जाय। तार्किकता से जहा जगत को कुछ विचारकता ३-सब मिलाकर जिसकी योग्यताका टोटल देते है वहा भावना न होने से विचारकता का 'अधिक हो उसे नायक या मुख्य स्वीकार कर उपयोग नहीं कर पाते। और दिग्भ्रम में ही लेना। उनका जीवन समाप्त होता है । ये एकलिगी पुरु४-कौन नायक है और कौन अनुयायी 'पत्ववान मनुष्य भी देने की अपेक्षा हानि अधिक इसका पता यथायोग्य बाहर के लोगा को न कर जाते हैं, इसलिये जरूरत इस बात की है कि लगने देना। मनुष्य बुद्धि और भावना का समन्वय कर उभयइस प्रकार गृह व्यवस्था अच्छी तरह चलने लिंगी बने तभी उसका जीवन सफल हो सकता है। लगेगी। ईट पर ईट जम जायगी और घर वन , नारीत्व और नरत्व के सभी गुण हरक . जायगा। अन्तर इतना ही होगा कि नग्नाग म मनुष्य पा सके यह तो कठिन है फिर भी बास से हमने अमुक को ही ऊपर की ईंट समझ रक्खा ग्यास गुण और कार्य हरएक मनुष्य में अवश्य है और अमुक को ही नीचे की ईट, यह अन्धेर होना चाहिये। बुद्धि और भावना का समन्वय

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