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सत्यामृत
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हुई होगी पर आज तो उसके नाम पर बड़ी वि. के साथ दिन-गत पेट की भट्टी में जाते रहते म्वना और असुविधा होती है । सोला शह शुध्दि है और मुह की दुर्गध संदूसरों को जो कष्ट होता का ठीक प नहीं है। इससे अनावश्यक शुद्धि है वह अलग, स्नान न करने के नियम से तो का बोझ लढता है और आवश्यक शुदिध पर राहगी फैलती है, खाम कर गरम या समशीतोष्ण उपेक्षा होती है।
देशों में उससे भी शरीर भीड़ों का घर बन जाता केवल रिवाज के पालन से वाह्य शुद्धि नहीं।
है. प्रत्येक रोमकूप सूक्ष्म कीटों का शिविर हो हो जाती उसके लिये भी अक्ल या विवेक की
जाता है । मुह पर पट्टी लगाने से हवा के जीव जरूरत है। बाह्य शुद्ध व्यक्ति जहा चाहे कचरा न का
तो मरते ही हैं क्योंकि मुंह को हवा सामने ने बालेगा, जिस चाहे जगह को अपने पैरो से गला का पट्टी से रुककर नीचे जाने लगती हे न करेगा, खकार आदि जहां चाहे न डालेगा. वह जहा कि हवा है ही, इस प्रकार वहा भी हिंसा इस बात का स्वयाल रखेगा कि मेरे किसी काम होनी है । अगर थोड़ी बहुत बचती भी हो ना से हवा खराब न हो. गदगी न फैले. कालान्तर उसकी कमर पट्टी की गंदगी में निकल पाती है। में हमें और दूसरे को कष्ट न हो। थूक वगैरह पड़ते रहने से पट्टी ऋसिकुल का घर ... बाह्य शुद्धि की बड़ी जरूरत है । सभ्यता अन जाती है। के बाह्य रूप का यह भी एक मापदण्ड है किन्तु हिंसा अहिंसा के विचार में हमें दोनों पना सगमतारी के साथ इसका प्रयोग होना चाहिये। का हिसाब रखना चाहिये। ऐसा न हो कि थोड़ो
अन्त शुदध-अन्तःशाद वे व्यकितने सी हिंसा बचाने के पीछे हम बहुत सी हिंसा के अपने मनको शुदर कर लिया है, जिनके मनमें कारण जुटालें । जहा सूक्ष्म हिंसा से भी दूर रहना किसी के साथ अन्याय करने की या अन्याय से हो वहां सब से अच्छी बात यह होगी कि सूक्ष्म अपना स्वार्थ सिद्ध करने की इच्छा नहीं होती, जावा
जीवों को पैदा न होने दिया जाय । सूक्ष्म प्राणियों ऐसे लोग महान व्यक्ति तो हैं पर वाहादि के की हिंसा से बचने का सर्वोत्तम उपाय स्वच्छता बिना उनका जीवन अच्छी तरह अनुकरणीय नहीं होता है।
प्रस्ताव न करना दतौन न करना आदि बहुत से लोगों को यह भ्रम हो जाता है कि नियम बहुत धर्मा ने अपनी साधु-संस्था में दाखिल वाहशुद्धि अन्त शुद्धि को बाधक है । वे दतौन
किये है। और ऐसा मालूम होता है कि वे अहिंसा इसलिये नहीं करने का दातों के कीड़े मरेगे, स्नान अनुसार तो उनसे अहिंसा की वृद्धि नहीं होती
के खमाल से दाखिल किये हैं पर आपके कहने के इसलिये नहीं करते कि शरीर के स्पर्श से जल के जीव मरेंगे, मुंह के आगे इसलिये कपड़े की पट्टी
तब फिर वे किसलिये किये गये। पाधते हैं कि उससे स्वास की गरम हवा से बाहर
उत्तर-जब किसी नये मजहब का प्रचार को हवा के जीव मरते हैं, इस प्रकार 'अहिंसा के करना होता है तब उसके प्रचारक साधनों की लिये वे अशुदिध की उपासना करते हैं। पर वे वही अवस्था होती है जो कि दिग्विजय के नि बरा गौर करेंगे तो उन्हें मालूम हो जायगा कि
निकली हुई किसी सेना के सैनिको की। उन अशुदिध की उपासना करके भी वे अहिंसा की
सैनिकों को जीवन चर्चा राजवानी में रहनेवाले रक्षा नहीं कर पाये हैं।
सैनिको सरीखो या साधारण गृहस्थी सरीखी
नहीं होती यही बात नई धर्म संस्था के साधुनी सौन करने से कचित् एक बार थोडे से की है। इन साधुओं को चड़ी कड़ाई के साथ जीव मरते हागे पर दौन न करने से दाता में अपरिग्रह तथा ब्रह्मचर्म का पालन करना पड़ता बहुत से कौड़े पड़ते हैं जो कि थूक के प्रत्येक है इसलिये समस्त श्रृंगाग का बड़ी कड़ाई से