Book Title: Satyamrut Drhsuti Kand
Author(s): Satya Samaj Sansthapak
Publisher: Satyashram Vardha

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Page 258
________________ [२६० - - - - N ama ___उसकी गति ही नष्ट हा जागा । इसलिये हम कह दृष्टिकांड का उपसंहार सकते है कि विश्व समय पर टिका हुया है। और दृष्टि-काड में जितनी दृष्टियाँ बतलाई गई है जो इतना महान् है कि जिसके बल पर विश्व दिका वे सब भगवान सत्य के दर्शन का फल हैं या या हुमा है वह भगवान नहीं तो क्या है ? कहना चाहिये कि इन सब दृष्टियों के मार्ग क. . दूसरी बात यह है कि सृष्टि का माहान भाग समझ जाना भगवान सन्यं का वर्णन है और उनके चैतन्यरूप या चैतन्य से बना हुआ है, अगर साट को जीवन में उतारना भगरान सत्य को पा जाना में से गणवान पदार्थ-मनुष्य पशु-पक्षी. जलचर है। सच बोलना भगवान सत्य नही है, वह तो वनपनि आदि निकाल दिय बाग ना मृष्टि क्या भगवती अहिंसा का एक अंग है, अगवान सत्य रहे १ सृष्टि का समस्त सौनय विकास आदि तो परब्रह्म की तरह वह व्यापक चैतन्य है जो चैतन्य से है इमी को हम चिनान, मनबहा समात आत्माओं में भा हुया है। वह अनन्त चैनन्य हो जाए-सृष्टि का विकास और कल्याण या सत्य भगवान कहते है। कर्ता है। इसलिये वह भगवान है। यह मन्य भगनान घट बट व्यापी है. हरमैवह चुका हूँ कि भगवान पक'प्रगम धंगी। .. प्राणी में सुब-दुम्म अनुभव करने का. दुम्न घर या अनिश्चित तत्व है। उपदश संस्कार दूर करने का सुप प्रा करने की और उसका मनाने की चित और विवेक शक्ति पाई जाती किसी विशेप घटनासे प्रभावित होकर जिसे विश्वास है। वह भगवान सत्व का अंश । यही हो जाता है वह उसे जगकर्ता के रूप में एक श जब विशेष नानाम प्रगट हा जाना है तब महान व्यक्ति मान लेता है, जिस का विस्वास पाणी कर्मयोगी स्थितिप्रज्ञ, कंवली, जिन पहेत. नही जमता वह निरीश्वरवादी बन जाता है । पर नत्री पंगम्यर नीर और अवतार यानि फरईश्वरवादी हो या निरीश्वरवादी आत्मवादी हो ताने लायक बन जाता है। यही है भगवान सत्य या अनात्मवादी, उसको यह तो समझ में माही का दर्शन । द्रष्टि-काई में भगवान् सत्यम दर्शन जायगा कि सृष्टि में कार्ग काग्ण की एक परम्परा के लिये समझने योग्य कुछ बाते, भगवान के है वह कभी नष्ट नहीं हो सकी। कार्य कारण दर्शन का उपाय और उस दर्शन का फल बताया की सभी पाररा नष्ट हो जाय नो सष्टि ही न रहे गया है । [ दृष्टिकाण्ड समाप्त ] FFES RAJAN INDIAS Panvar

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