Book Title: Satyamrut Drhsuti Kand
Author(s): Satya Samaj Sansthapak
Publisher: Satyashram Vardha

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Page 246
________________ देव या माग्य की मुख्यता नहीं है। फिर भी कुछ करेगा या खेती करके अनाज उत्पन्न करेगा यह मनुष्य ऐसे हैं कि जो देव के भरोसे बैठे रहते हैं यत्न प्रधान है। इस अमा से सोना का अन्तर और कुछ यूरा यत्न नहीं करते। इस विषय को ध्यान में पा जायगा। लेकर मानव-जीवन की तीन श्रेणियों होती हैं। प्रश्न-जैसे श्रापर्ने देववाण और दैवप्रधान १ 'देववादी, २ देव-प्रधान ! ३ यल-रधान। दो भेद किये वैसे यत्नवादी और यत्न प्रधान से दो भेद क्यों नहीं करते हैं ? । दैववादी (वूडोवादिर)-देववादी वे अका मेएय मनुष्य हैं जो स्वयं क ह ते उत्तर-दैववादी और देवप्रधान होने से दूसरे करुणावश कुछ दे देते हैं उसे अपना भाग्य कतृत्व में अन्तर होता है परन्तु यत्नवादी और समझते हैं अपनी तुर्दशा और पतन को भी देव यत्न प्रधान होने से कत्व में अन्तर नहीं होता के मत्थे मढ़ देते हैं और अपने दोपनही देखते. इसलिये इन में भेद बतलाना उचित नहीं। ये जघन्य श्रेणी के मनुष्य हैं। प्रभजो मनु य ईश्वर परलोक पुण्य पाप दैवप्रधानवादी (चूडोचिन्दोषादिर) वो भाग्य आदि को मानता है वही देववादी बनता नहीं मानता वह देयवाटी किसक प्रधान वे है जो परिस्थिति जरा प्रतिकूल हुई कि " देव का रोना रोने लगते हैं और कुछ नहीं कर , वज्ञपर बनेगा ? इसलिये मनुष्य नास्तिक बने यह पाते। सब से अच्छा है। ३ यानप्रधान ( घटो चिन्दोवादिर )- यत्न , उत्तर-दैववादी बनने के लिये ईश्वर परलोक प्रधान वे है जो देव को पर्वाह नहीं करते। वे आदि मानने की जरूरत नहीं है। पशुपक्षी डाय: यही सोचते हैं कि दैव अपना काम करे और मैं समी ईश्वर परलोक श्रादि नहीं मानते, नहीं सम मी वैदेववाडी हैं और बडे बड़े नास्तिक अपना करूगा। परिस्थिति अगर प्रतिकूल हो भी अकर्मण्य और दैववादी होते हैं। यो वे उसको भी पर्चाह नहीं करते। देव का प्रश्नदेव से आपका मतलब क्या है ? अगर जोर चल भी जाता है तो वे निराश नहीं होते, एक बार असफल होकर भी कार्य में डटे उत्तर-हमारी वर्तमान परिस्थिति जिन रहत हैं। 'विधाता की रेख पर मेव मारना, कारणों का फल है उनको हम देव कहते हैं उस यह कहावत जिनके कार्यों के लिये प्रसिद्ध है, वे मानलीजिये कि अन्म से ही कोई कमजोर है इस ही यल-रधान हैं। बड़े बड़े क्रान्तिकारी और कमजोरी का कारण किसी के शब्दों में पूर्व जन्म तीर्थकर पैगम्बर अवतार साम्राज्य संस्थापक पाप का उदय है, किसी के शब्दो में माता आदि इसी श्रेणी के होते है। पिता.की अमुक भूल है, किसी के शब्दों में प्रकृति इस नीनों का अन्तर समझने के लिये एक ___ का प्रकोप है। इस प्रकार भास्तिक और नास्तिक उपमा देना ठीक होगा। एक आदमी ऐसा है जो । सभी के सत से उस कमजोरी का कुछ न कुछ पकी एकाई रसोई तयार मिले तो भोजन कर कारण है। यही दैव है, वह ईश्वर एकृति कर्म लेगा नहीं तो मूखा पहा रहेगा-वह देववादी है। प्राधि कुछ भी हो सकता है इसलिये देव को जा रहेगा-वह दववादा है। श्रास्तिकभी मानते हैं और नास्तिक भी मानते हैं । दूसरा ऐसा है जो अपने हाथ से पकाकर खा सकता है लेकिन पकाने की सामग्री न मिले तो। रम-तब तो देव एक सत्य वस्तु मालूम भूखा रहेगा वह देव प्रधान है। तीसरा ऐसा है होती है फिर देववाद मे बुराई क्या है जिससे जो हर हालत में पेट भरने की कोशिश करेगा। दैववादी को आप धन्य नणी का कहते हैं। सोमनी न होगी तो बाजार से खरीद लायेगा, उत्तर-दैव बात दूसरी है और देववाद बात पैसा न होंगे तो मिहनत मजूरी से पैदा पैदा दूसरी । देव संस्था है परन्तु ठेववाद असत्य । अब

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