Book Title: Satyamrut Drhsuti Kand
Author(s): Satya Samaj Sansthapak
Publisher: Satyashram Vardha

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Page 249
________________ दाएका [ २५१ - - - - - लोभ से ढ़सठूस कर खूब या जाता है तब हम उत्तर-एक बार विधाता ने एक आदमी के कहते हैं कि इस बीमार पड़ना है इसलिये यह भाग्य में लिख दिया कि इसके भाग्य में एक खूप खाता है अथवा इसकी होनहार खराब है काला घोडा ही रहेगा इससे अधिक वैभव इसे इसलिये यह खूब खाता है। कभी न मिलेगा, न इससे कम होगा। उस आदमी वास्तव मे वह आदमी बीमार होना नहीं को विधाता को इस बात से बहुत दुःख हुआ. चाहता फिर भी बीमार होने का कारण इतना और ज्यो ही उसे काला घोड़ा मिला उसने उसे । साफ है कि उसे देखते हुए अगर कोई उससे नहीं मार डाला । विधाताने फिर उसे दूसरा काला हरता तो उसकी तुलना उसी से की जा सकती घोडा दिलाया, उसे भी उसनं मार डाला। विधाता है जो जानबूझ कर बीमार होना चाहता है, यह अलंकार है। इसी प्रकार वह मनुष्य बीमार होने __उन्हें तुरन्त मारता जाता । अब विधाता बड़े परे. वाला है इसलिये यधिक खा रहा है यह बात सा शान हुए, उनने उसे समझाया कि तु काले घोड़े नहीं है किन्तु अधिक स्वा रहा है इसलिये बीमार . मत मार. पर वह राजी न हुआ । वह राजी हुआ तब जब उसने विधाता से राज्य वैभव भाग लिया। होगा। परन्तु बीमारी का कारण इतना स्पष्ट रहने पर भी वह नहीं समझता और उसका फल इतना यह भी एक कहानी है जो किसीने देव के निश्चित है, जैसा कि कारण निश्चित है. इसलिये ऊपर यत्ल की विजय वतलाने के लिये कल्पित कार्य कारण-व्यत्यय किया गया है। बीमारी रूप की है। किसीने देव की महत्ता बताने के लिये. कार्य को कारण के रूप में, और अधिक भोजन- रावण और कंस की कथाओं में ज्योतिषियो का रूप कारण को कार्य के रूपमें, कहा गया है। कल्पित वार्तालाप जोड़ा तो किसीने 'यत्न की भापा की इस विशेप शैली से तर्कसिद्ध अनुभव- मुख्यता बताने के लिये कहानी गढ़ डाली । इस सिद्ध कार्य-कारण भाव उलट-पलट नही हो प्रकार की कहानियाँ या वार्तालाप इतिहास नही सकता । इस प्रकार भवितव्य यत्न का फल है है किन्तु वालहदयां के ऊपर दैव या यत्न की छाप इसलिये जीवन यत्न-प्रधान है। मारने के लिये की गई कल्पनाए हैं। विचार के प्रश्न-कथा-साहित्य के पढने से पता लगता लिये इन कल्पनाओं को आधार नहीं बनाया है कि भवितव्य पहिले से निश्चित हो जाता है जा सकता इसके लिये अपना जीवन या वर्तमान और उसके अनुसार मतिति होती है। एक जीवन देखना चाहिये । ज्योतिपियो के द्वारा जो शास्त्र में (गुणभद्र का उत्तरपुराण ) कथन है कि भविष्य कथन किये जाते हैं उनसे अनर्थ ही होता सीता रावण की पुत्री थी और उसके जन्म के है । ऊपर के रावण और कस के उदाहरणो को समय ज्योतिपियों ने कह दिया था कि इस पुत्री हो देखो। यदि सीता के विषय में ज्योतिषियों ने के निमित्त से रावण की मृत्यु होगी। इसलिये 'भविष्य कथन ने किया होता तो सीता रावण के रावणने सुदूर उत्तर में जनक राज्य के एक खेत 'घर में पुत्री के रूपमें पली होती, फिर सीता हरण में वह लड़की छुड़वादी, जिसे जनक ने पाला। क्यों होता और रावण की मौत क्या होती ? इस प्रकार रावण ने उस लड़की के निमित्त से देवकी के पुत्र के विषय में अगर ज्योतिषी ने भविष्य 'बचने की कोशिश की परन्तु आखिर वह उसी वाणी न की होती तो कंस अपने भानजों की हत्या के कारण भारा गया। इसी प्रकार कसने भी क्यों करता और जन्म-जात वैर मोल क्यो लेता। देवकी के पुत्र से बचने के लिये बहुत कोशिश की वह अपने भानजों से प्यार करता और ऐसी किन्तु कृष्ण के हाथसे उसकी मौत्त न टली, इससे हालत में इसकी सम्भावना नहीं थी कि श्रीकृष्ण भवितव्यता की निश्चितता और प्रबलता मालूम अपने प्यारे मामा.की हत्या करते। जैन पुराणों के अनुसार श्री नेमिनाथ ने कह दिया था कि होती है।

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