Book Title: Satyamrut Drhsuti Kand
Author(s): Satya Samaj Sansthapak
Publisher: Satyashram Vardha

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Page 242
________________ [२४४ } सत्यामृत - - - - यह कमी पूरी हो जाने पर रूढिमोह नष्ट हो सिर्फ उपमोग्य होती तो नर नारी के मिलन का सकता है। सुख और इच्छा सिर्फ नरमे होती, नारी में नहीं, ११ जुद्रकर्मता ( की तकनो)-नारी को जो परन्तु दोनों में इच्छा होती है, सुख होता है इसकार्यक्षेत्र दिया गया उसमें वह सफलता से काम । लिये जैसा नर उपभोक्ता है वैसे नारी भी । इसी. लिये व्यभिचार आदि जैसे नर के लिये पाप हैं कर रही है, अगर घडे काम दिये जाय या जहा। वैसे नारी के लिये भी । नारी अगर उपभोग्य ही दिये जाते है वहा भी वह सफलता से काम करती हो तो वह व्यभिचारिणी कमी न कहलावे, वह है, साथ ही उद्योग धंधो और व्यापार में तो वह सिर्फ व्यभिचार्य ही बन सके, जैसे चोरी में पुरुष के समान हो ही जाती है। सेना पुलिस आदिक कामोंमें भी वह सफल होती है। इसलिये मनुष्य ही चोर कहलाता है धन चोर नहीं कहा लाना । इस प्रकार किसी भी तरह पुरुष उप क्षुद्रकर्मता उसका स्वभाव नहीं कहा जा सकता ! दसरी बात यह है कि नारी का काम क्षुद्र भोक्ता और स्त्री उपभोग्य नहीं हो सकती। जो का है दोनो समान है। नहीं है । मनुष्य निर्माण का जो कार्य नारी को करना पड़ता है वह पुरुप को नहीं करना पड़ता __ इस प्रकारक और भी दोप लगाये जासकेगे और उनका परिहार भी किया जासकेगा। परन्तु मारी के इस कार्य का मूल्य तो है ही, धरू कामो इसका यह मतलब नहीं है कि नारी सर्वथा का मूल्य भी आर्थिक दृष्टि से कम नहीं है। निर्दोष है और पुरुष ही दोपी है। दोनों मे गुण .. पुरुप के मूल्य की महत्ता साम्राज्यवाद और है, दोनोमें दोष हैं । परिस्थितिवश और चिरकाल पूजीवाद के कारण है। इनक कारण मनुष्य बद संस्कारवश किसी में एक दोप अधिक होगया माशी, बेईमानी, विश्वासघात, ऋ रवा आदि के है और किसी में कोई दूसरा । मौलिक दृष्टिस बदले में सम्पत्ति पाता है। ये पाप हट जाय और दोनो समान है। सेवा तथा त्याग के अनुसार ही यदि मनुष्य का नर नारी का कुछ अन्तर तो आवश्यक है आर्थिक मल्य निश्चित किया जाय तो नर नारी यह रहना चाहिये और रहेगा भी कुछ अन्तर का आधिक मूल्य समान ही होगा । इसलिये अनावश्यक या हानिकर है वह मिटना चाहिये क्षुद्रकर्मता नारी का स्वभाव नहीं कहा जा अन्त में कुछ विशेषता नारी मे रह जायगी और सकता। कुछ नर में, इस प्रकार उनमे कुछ आवश्यक १२ अधैर्ग ( नोधिरो)- इस विषय में तो । र विषमता रहेगी परन्तु उससे उनका दर्जा असमान होगा। पुरुप की अपेदा नारी ही श्रेष्ठ होगी। पुरुप जब प्रवरा जाता है तब नारी ही उसे पर्स देती है। तो व्यक्तित्व गौण है इसलिये उनके समान दर्ज नारीत्व और पुरुषत्व तो गुणरूप है उस में सहिष्णुता नारी में पुरुप की अपेक्षा भी अधिक पर तो आपत्ति है ही नहीं। है इसलिये उसमें धर्म अधिक हो यही अधिक इन कारणों से लिंगजीवन के चार भेद नही न सम्भव है । र, इस विषय में पुरुप अधिक हो किय गये क्योकि नारीजीवन और नग्जीवन में या नारी, पर यह सब अधिकता जन्मजात नई तरतमता नहीं हो सकती थी ! है जिसमे नारी नर के साथ इस का सम्बन्ध पनतरत्व और नारीत्व भले ही समान सोदा तास। हो परन्तु इनकी समानता के प्रचार से समाज १३-३पभोग्यता (बशगेगे)- उपभोग्य नाग की बड़ी हानि है। सस्कृन की एक कहावत है मी और नर भी। दोनों गम दृसरे के उपभोग्य कि लदा कोई मालिक नहीं होता या जहा बहुत उपभोगा, मित्र और सायोगी हैं। अगर नारी मालिक होते हैं वहा विनाश होजाता है (अना

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