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सत्यामृत
मिला इस प्रकार नारी दासी रह गई और पुरुष स्वामी बन गया । अव उल्टी गंगा बहने लगी । पुरुष जो अज्ञात स्थानो में जाने का और बाहर की हर एक परिस्थिति के सामना करने का अभ्यासी था वह तो घरवाला बनकर घर में रहा, और नारी, जिसे घर के बाहर निकलने का बहुत कम अभ्यास था, घरवाली बनने के लिये अपना घर-पैतृक कुल छोड़ने लगी। खैर, कम से कम किसी एक को घर छोड़ना ही पड़ता, परन्तु खेद तो यह है कि एक घर छोड़कर भी वह दूसरे घर में घरवाली न बन सकी। वह दासी ही बनी। यद्यपि उसे पदवी तो पत्नी अर्थात् मालकिन की मिली पर वह पदवी अर्थशून्य थी। इसी प्रकार घरवाली की पदवी भी व्यर्थ हुई । पुरुष तो घरवाला रहा पर वह घरवाली के नाम से घर बनी। बड़े बड़े पडितो ने भी कहा - दीवार वगैरह को घर नहीं कहते घरaat को घर कहते हैं [गृह] हि गृहिणी माहुः न कुडयकटिसंहतिम - सागारधर्मामृत ] इस प्रकार मूल से जो घरवाले नहीं था वह तो घरवाला बन गया और जो घर वाली थी वह घर होकर रह गई।
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इस प्रकार नारी और पुरुष के गुणों ने जहाँ मनुष्य को हर तरह विकसित या समुबनाया उसी प्रकार इनके सहज टोपी ने मनुष्य को हैवान और शैतान बनाया। नारीत्व का मूल्य उसके गुण से है वह पुरुष को भी रूप नाने की चीज है और नारीत्व का जो दोप है वह नारी की भी छोड़ना चाहिये । पुरुषत्व का मूल्य उसके | से है वह नारी को भी अपनाना गु चाहिये। और पुरुष का जो दोष है वह पुरुष की भी छोड़ना चाहिये।
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जिसमें न तो नारीत्व के गुण है न पुरुपत्व अगर किसी एक के दोष
• वह नपुंसक है। भले ही वह शरीर से नपुं. एक न हो- स्त्री या पुरुष हो 1
२. एकलिंगी (ननगिर ) - जिसमें या तो गुण विशेष में है या नारीत्व के
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गुण, वह मनुष्य एकलिंगी है। किसी मनुष्य में कलाप्रियता सेवा आदि की भावना हो पर शक्ति विद्वत्ता आदि पुरुषोचित गुण न हो वह नारीत्ववान मनुष्य है भले वह शरीर से नारी हो, पुरुष हो या नपुंसक हो | इसी प्रकार जिसमें पुरुषत्व' के गुण हो परन्तु नारीत्व के गुण न हो वह पुरु पत्ववान मनुष्य है, भले ही वह नारी हो, नपुंसक हो या पुरुष हो । यह एकलिंगी मनुष्य अधूरा मनुष्य है मध्यम श्रेणी का है ।
प्रश्न- एकलिंगी मनुष्य पुरूष हो या नारी, इसमें कोई बुराई नहीं है परन्तु पुरुषत्ववती नारी और नारीत्ववान पुरुष, यह अच्छा नहीं कहा जा सकता । नारी, पुरुष बने और पुरुप, नारी बने यह तो लैंगिक विडम्बना है ।
उत्तर- ऊपर जो पुरुषत्व के और नारीत्व के गुण बताये गये हैं वे इतने पवित्र और कल्याणकारी हैं कि कोई भी उन्हें पाकर धन्य हो सकता है। अगर कोई मनुष्य रोगियों की सेवा करने में चतुर और उत्साही है तो यह नारीत्ववान पुरुष जगत् की सेवा करके अपने जीवन को सफल हो बनाता है उसका जीवन धन्य है । इसी प्रकार कोई नारी झाँसी की लक्ष्मीघाई या फ्रास की देवी जोन की तरह अपने देश की रक्षा के लिये शेत्र सञ्चालन करती है तो ऐसी पुरुपत्ववत्ती नारी भी धन्य है उसका जीवन सफल है कल्याणकारी है। इन जीवनों में किसी तरह से लैंगिक विडम्बना नहीं है। लैंगिक वि पना वहाँ है जहाँ पुरुष नारीत्र के गुणों का परिचय नहीं देता, कोई जनसेवा नहीं करता, किन्तु नारी का वेप बनाता है, नारी जीवन की सुविधाएँ चाहता है और नारी के ढंग से कामुकता का परिचय देता है। गुण तो गुण हैं उनसे जीवन सफल और धन्य होता है फिर वे नारीत्व के हो या पुरुषत्व के, और उन्हें कोई भी प्राप्त करे ।,
प्रश्न---नारीत्ववान पुरुष पुरुषत्व की विड