Book Title: Satyamrut Drhsuti Kand
Author(s): Satya Samaj Sansthapak
Publisher: Satyashram Vardha

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Page 238
________________ - - - - - - - - - - - ADA - - - - - - - - - -- - - - - - - - - कारण नहीं कही जा सकती। न्चक ही वास्तविक मायाचार है बाकी ज्ञान दूसरी बात यह है कि नारी की यह अधिक भेदों मे तो सिर्फ मायाचार का शरीर है निर्बलता सामाजिक सन्यवस्था के लिये किये मायाचार का श्रास्ता नहीं है। उससे गय कार्यक्षेत्र के विभाग का फल है। अगर कार्य- दूसरों के न्यायोचिन अधिकारी को धधा क्षेत्र का विभाग बदल जाय दो अवस्था उल्टी हो नहीं लगता इसलिये वे निन्दनीय नहीं कहे जा जाय 1 बाली द्वीप में व्यापार खेती आदि सभी सकत । काम नारियों ही करती हैं इसलिये वे तीस तीस लज्जासनित माथाचार (निजोजकटो) चालास चालीस फुट के माड़ा पर एक हाथ से किसी को ठगने की दृष्टि स नहीं होता, वह एक लटक कर दूसरे हाथ से फल तोड़ सकती हैं, तरह की निबलता या संकोच का परिणाम होता बहादुरी के सब काम वे ही करती है। जबकि हैं। बहुतसी नववधु श्री में यह पाया जाता है। पुरुष घर में रहते हैं रोटी.चनात मान बहुत से लड़ा लडाकयों विवाह के लिये इछुक स्त्रियो से वे ऐसे ही डरते हैं जैसे दूसरे देशो मे ९. हो नो भी लज्जावश उससे इनकार करेंगे, उससे खिया पुरुपा से डरती हैं। इसलिये नर नारी में दूर भागने का ढोग करेंगे। यह लज्जाजनित बन की बात को लेकर होनाधिकत्ता बताना ठीक मायाचार कहीं कहीं नारी में कुछ विशेष मात्रा में ना गया है । यह पर्वा श्रादि कुप्रथाओं का, बदन नहीं। काल से डाले गय सरकार का और कार्यक्षेत्र के २-मूढता ( ऊतो)- साधारण नारी उतनी भेट का परिणाम है, नारी का मौलिक दोय नहीं ही मूढ़ होती है जिवचा कि साधारण नर । हा, है। और जबतक यह अतिमात्रा में नहीं हो, जो पुरुष विद्याजीवी या बाह्य जगत से विशेष जीवन के कार्यों में अईगान डाले तबतक तो सम्पर्कचाले होते हैं और उनके घर की त्रियों यह सन्दर भी है, आकर्षण की कला भी है, काम इसी कोटि की नहीं होती तो उनकी दृष्टि में वे काना है. हिसक नहीं है । मूढ कहलाती हैं। अन्यथा एक ग्राम्य नारी और प्राम्य पुरुष का मूढदा में कोई खास अन्तर नही ख-शिष्टाचारी मायाचार (नुमं कुटो ) भी पन्तव्य है। जब एक मुसलमान भोजन करने बैठता है तब पास में बैठे हुए आदमी से, ग्यास __जहा नारी को विद्योपार्जन तथा बाहिरी कर मुसलमान से कहता है- आइये, बिस्मिन्ना सम्पर्क का विशेप अवसर मिलता है वहा नारी' कीजिये । यह प्रेम-प्रदर्शन का एक शिष्टाचार है। चतुरता या समझदारी के क्षेत्र में पुरुष से कम हिन्दुली में भी कही कहीं पानी के विषय में ऐसा नहीं रहती। शिष्टाचार पाया जाता है। एक भोज में बहुत से " ३ मायाचार ( कटो)- नारी में मायाचार हिन्दू बैठे हैं एक सज्जन पानी पीने के लिये न पुरुप से अधिक है न कम और न सभी अपन लोटे में से कटोरी में पानी भरते हैं और तरह का मायाचार धुरा कहा जा सकता है। सत्र से कहते है लीजिये लीजिये। (अब यह मायाचार जहा हूं प और हिंसा से सम्बन्ध रखता शिष्टाचर प्रायः बन्द हो गया है) निसन्देह वे है वहीं वह मायाचार कहा जाता है, अन्यथा समझते हैं कि पानी कोई लेगा नहीं, और यही बहुतसा मायाचार तो शिष्टाचार और दया आदि समझ कर बताते हैं, इसलिये यह मायाचार है, का फल होता है । मायाचार कई तरह का होता परन्तु शिष्टाचारी भायाचार होने से क्षन्तव्य है। है। क--जज्जाजनित, ख-शिष्टाचारी, ग-राह- ऐसे शिष्टाचार कितने अंश में रखना चाहिये स्थिक, ध-तथ्य शोधक, र-आत्मरक्षक, च-प्रति- कितने अश में नहीं, यह विचार दूसरा है पर घोधक, छ-विनोदी, ज-ज्वञ्चक । इनमें से प्रव. जो भी शिष्टाचार के नाम पर रह जाय उसमें होता।

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