Book Title: Satyamrut Drhsuti Kand
Author(s): Satya Samaj Sansthapak
Publisher: Satyashram Vardha

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Page 233
________________ टिकाह [२५] - रूप में शारीरिक निर्वलता । नारीशरीर के रक्त अपेक्षा सबलता अधिक अई। यह पुरुष का मांस द्वारा ही एक प्राणी की रचना होती है इस. विशेष गुण है। इस गुण ने अन्य गुण पैदा लिये यह बात स्वाभाविक्त थी कि पुरुष शरीर फी किये। सबलता से निर्भया पैदा हुई, घर के अपेक्षा नारी का शरीर कुछ निर्वल हो । इस बाहर भ्रमण करने के विशेष अवसर मिले, नारी निर्यलता में नारी का जग भी अपराध नहीं था के कार्य में संरक्षक होने से बाहिरी संघर्ण अधिक वल्कि मानव-जाति के निर्माण और संरक्षण के हुआ इन सब कारणों से उसकी बुद्धि का विकास लिये होनेवाले उसके स्वाभाविक त्याग का यह अधिक होगया, अनुभवों के बढ़ने से विद्वत्ता अनिवार्य परिणाम था। वह निर्बलता उसके बहुत बढ़ी, वीरता साहस आदि गुणों का भी त्याग की निशानी होने से सन्मान की चीज है। काफी विकास हुआ। बाहरी परिवर्तन अर्थात् यह भी स्वाभाविक था कि जैसे गुणों में बड़े-बड़े परिवर्तन करने की मनोवृत्ति और शक्ति वृद्धि हुई उसी प्रकार इस दोप में भी वृद्धि होती, भी इसमें अधिक भागई, नारी के छोटे से संसार सो वह हुई। पशुपतियों में नर मादा की शक्ति का इस विशाल विश्व के साथ सम्बन्ध जोड़ने में में जो अन्तर होता है उससे कई गणा अन्तर पुरुष का ही कत्त्व अधिक रहा। इस प्रकार मानव-जातिक नर मादा में है। गणों की पद्धि तो पुरुप नारीत्व के गुणों में पीछे रहकर भी अन्य उचित कही जासकती है पर यह दोपवृत्ति उचित अनेक गुणों में बढ़ गया। नहीं कही जा सकती। इसलिये प्रत्येक मनुष्य को पुरुष में बल की जो विशेषता हुई उसने नारीत्व के गुण प्राप्त करने के लिये अधिक से अन्य अनेक गुणों को पैदा किया पर उसमें जो अधिक प्रयत्ल करना चाहिये पर नारीत्व के इस लापर्वाही का दोप था उसने अन्य अनेक दोषी सहज दोष से बचने की कोशिश भी करना को पैदा किया इसके कारण सवलता दोषो को चाहिये। नारी-शरीरधारी मनुष्य को इतनी ही बढ़ाने में भी सहायक हुई। निवेलता क्षम्य है जो मानव-निर्माण के लिये नारी को मानव-निर्माण के कार्य में पुरुष अनिवार्य हो चुकी है। की आवश्यकता थी, पुरुष ने इसका दुरुपयोग और अब तो शारीरिक शक्ति भी सिर्फ मटी किया। रक्षक होने से, सबल होने से, बाहरी के वलपर निर्भर नहीं है। अब तो अस्त्रशस्त्रों के सगत से विशेष सम्बन्ध होने से वह मालिक . ऊपर निर्भर है। अगर बुद्धिमत्ता हो, जानकारी बन गया। पहिले उसकी लापर्वाही का परिणाम हो, हस्तकौशल हो, साहस हो तो अस्वशस्त्रों के यह होता था कि जब उसका दिल चाहता था सहारे निर्वल मी सबल का सामना कर सकता। तब घर छोड़कर चल देता था, अब यह होने लगा है। इस प्रकार नारी को सहज निर्वलता अव । कि घर की मालकिन को अलग कर दूसरी को उतना अनिष्ट पैदा नहीं कर सकती है। अन्य लाने लगा। साधनों से वह पशुवल में भी पुरुष के समकक्ष कहीं कहीं इस ज्यादती को रोकने के लिये खड़ी हो सकती है। इस तरफ नारीका विकास लो प्रयत्न हया और उससे जो समझौता हुआ होना चाहिये । फिर भी जो निर्दालता रह जाय उसके अनुसार पहिली मालकिन को निकालना वह परोपकार का परिणाम होने से उसका अना. तो बन्द होगया पर उसके रहते दूसरी मालकिन दर न करना चाहिये, उसका दुरुपयोग भी कदापि लाने का अधिकार हो गया। घर से बाहर रहने न करना चाहिये। के कारण उपार्जन का अवसर पुरुष को ही पुरुष को मानव-निर्माण के कार्य में नहीं अधिक मिला, इधर मालकिनों को बदलने या के बरावर लगना पड़ा, इसलिये उसमें भारी की निकालने या दूसरी लाने का अधिकार भी उसे

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