Book Title: Satyamrut Drhsuti Kand
Author(s): Satya Samaj Sansthapak
Publisher: Satyashram Vardha

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Page 235
________________ दृष्टिका २७ - - - -- - म्बना भले ही न हो किन्तु यह वा कहना ही का क्षेत्र व्यापक और महत्वपूर्ण है। ची से पड़ेगा कि पुरुषत्ववान् पुरुप से वह हलके दर्जे ऊंची चित्रकारी, संगीत, नृत्य, पाकशास्त्र की का है इसी प्रकार नारीत्ववती नारी से पुरुषत्व. कंची से अंची योग्यता, मानव हृदय को सुसंवती नारी हीन है। स्कृत बनाना शिक्षण देना, स्वच्छता, अनेक ____उत्तर--होनाधिकता का इससे कोई सम्बन्ध मनुष्यों के रहन सहन की सुव्यवस्था, प्रतिकूल नहीं है, इसका सम्बन्ध है युग की आवश्यकता परिस्थिति में शान्ति और व्यवस्था के साथ टिके से। किसी देशव्यापी बीमारी के समय अगर रहना, प्रेम वात्सल्य, मिष्टमापण, आदि अनेक रोगियों की सेवा मे कोई पुरुष होश्यार है तो वह गुण और कर्म नारीपन के कार्य है। राज्य का नारीत्ववान परुप का दर्जा किसी योद्धा से कम सेनापति यदि पुरुषत्ववान पुरुप है तो गृहसचिव नहीं है । राष्ट्र के ऊपर कोई प्राक्क्रमण हुआ हो नारीश्ववान पुरुष है ! नारी के हाथ में आज तो राष्ट्र रक्षा के लिये युद्ध क्षेत्र में काम करने कहाँ क्या रह गया है यह बात दूसरी है पर वाली पुरुषत्ववती नारी किसी नारीत्ववती नारी नारीत्व का क्षेत्र उतता संकुचित नहीं है । उसका से कम नहीं है 1 आदर्श तो यही है कि प्रत्ये। क्षेत्र विशाल है और उच्च है । इसलिये नारीत्व मनुष्य मे दोनों की विशेषताएँ हों, वह उभय- को छोटा न समझना चाहिये और इसीलिये लिंगी हो, परन्तु यदि ऐसा न हो तो अपनी रुचि नारीत्ववान पुरुष भी छोटा नहीं है ! हाँ इस बात योग्यता और राष्ट्र की आवश्यकता के अनुसार का ध्यान अवश्य रखना चाहिये कि समाज को किसी भी लिंग का काम कोई भी चुन सकता है। इस समय किसकी अधिक आवश्यकता है? - कोई कोई पुरुष बच्चों के लालन-पालन में आवश्यकता के अनुसार गुणों और कार्यों को इतने होश्यार होते हैं कि नारियों से भी बाजी अपनाकर हरएक नर और नारी को अपना मार ले जाते हैं, बहुत से पुरुष रंगमंच पर अनेक जीवन सफल बनाना चाहिये। रसों का ऐसा प्रदर्शन करते हैं और कलात्मक प्रभ-यदि पुरुष में भी भारीपन उचित है जीवन का ऐसा अच्छा परिचय देत है कि अनेक और नारी में भी पुरुपपन उचित है तो पुरुष अभिनेत्रियों से बाजी मार ले जाते हैं, और भी ओ भी लम्बे बाल रख कर नारियों सरीमा अनेक लियोचित कार्य हैं जिनमें बहुत से पुरुष शृङ्गार करना, साड़ी आदि पहिनना उचित निष्णात होते हैं एसे कार्य करनेवाले नारीत्ववान् समझा जायगा और इसी प्रकार स्त्रियों का पुरुषोपुरुष पुरुपत्ववान पुरुष से छोटे न होंगे। चित वेप रखना भी उचित समझा जायगा। क्या : नारीत्ववान पुरुष हमें छोटा मालूम होता इससे लैंगिक विडम्बना न होगी ! है इसका कारण है कि युगोस पूनीवाद साम्राज्य उत्तर-अवश्य ही यह विडम्बना है पर बाद आदि के कारण बाजार में नारीत्व के कार्यों यह नारीत्ववान पुरुष का रूप नहीं है। का मूल्य कम होगया है इसलिये पुरुपखवाली अमुक तरह का वेप रखना भारीपन या पुरुषपन नारी का हम सन्मान करते हैं और नारीत्ववान नहीं है 1 नर और नारी के क्षेप में आवश्यकता. पुरुप को या नारीत्ववती नारी को हम जुद्र घष्टि नुसार या सुविधानुसार अन्तर रहना उचित है। से देखते हैं। यह नारीत्व के विषय मे अज्ञान है। नारीपन या पुरुषपन के जो गुण यहा बतलाये ___घर में झाडू दे लेना, बच्चे को दूध पिला गये है उन गुणों से हरएक मनुष्य [नर यो नारी । देना या नाचना गाना ही नारीपन नहीं है और अपना और जगत का कल्याण कर सकता है साधारण,नारी इन कार्यों को जिस ढंग से करती परन्तु नर नारी की या नारी नर की पोशाक है उतनेमें ही नारीपन समाप्त नहीं होता। नारीपन पहिने इससे न तो उनको कुछ लाभ है न दूसरी

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