Book Title: Satyamrut Drhsuti Kand
Author(s): Satya Samaj Sansthapak
Publisher: Satyashram Vardha

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Page 226
________________ २२८] सत्यामृत - - तुलाजीविका है । अथवा पति की जीविका जिस ये ठग अनेक तरह के होते हैं। मुख्यता से श्रेणी की हो उस श्रेणी की जीविका है। वास्तव इनके तीन भेद हैं--प्रलोमनठग, दम्भठग, उधार में पतिपत्नी दोनों साझेदार हैं। ठग। .. राष्ट्र ने या समाज ने नारी के लिये जो प्रलोभनठग (लौभ चीट) लुभाकर ठगने कर्तव्य आवश्यक निश्चित कर दिये हो उन कर्तव्यों वाले प्रलोभनठग हैं। जैसे दूना सोना बनादेने का को न करनेवाली नारीकी जीविका आश्नयजीविका प्रलोभन देकर ठगनेवाले आदि प्रलोभन ठग हैं। कहनायगी। इसमें ठगनेवाले तो पापी अपराधी हैं ही, पर जो ___समाजवादी प्रार्थिक योजना के युग में एक उगजाता है वह भी कुछ अपराधी है। उसमें भी एक एक तरह की असंयम वृत्ति पाई जाती है। पर पूजीवादी युग में वह नहीं भी कहलासकती। इससे प्रलोभन ठग की नीचता कम नहीं होती। युग के अनुसार इसका विचार किया जासकता दम्भठग ( कुटुं चोट ) ठम्म ढोंग आदि है। पर साधारणत. पतिपत्नी आर्थिक दृष्टि से करके लोगों को ठग लेनेवाला दम्मठग है । शरीर अभिन्न है, परस्पर पूरक हैं इसलिये दोनो की मे सफेदा आदि लगाकर अपने को कोड़ी बनाकर, जीविका एक मानी जायगी। अन्धे लॅगड़े आदि होने का ढोग करके ठगलेने भिक्षाजीविका भीख मांगकर गुजर करन्स वाला दम्भठग है। अवा भविष्य में किसी भिक्षा जीविका है। किसी साम्प्रदायिक परस्परा उचित और सम्भव कार्य का विश्वास दिलाकर का अनुसार कोई साधु आदि की हैसियत से सुविधाएं शप्त करलेने वाला भी दम्भ ठग है। भिक्षा ले तो वह भिक्षाजीवी नहीं है, . ! इसके उधार ठग (मपंचीट) उधार के नामपर बदले मे वह उचित सेवा देता हो। किसी से सम्पत्ति लेकर फिर न चुकानेवाला जिन्हें श्रद्धापूर्वक दान दिया जाताना उधारठग है। इसमें सब से बड़े उधार ठग वे हैं याचना किये दान दिया जाता है, भिक्षुक के अनु. जो उधार लेते समय ही यह विचार रखते हैं कि सार दीनता का प्रदर्शन जिन्हें नहीं करना पड़ता होगा तो चुकायेंगे नहीं तो ये मुझसे क्या लेलेंगे। है, न भन में लाना पडता है वे भी भिनाजीवी चुकाने की परिस्थिति होजानेपर भी नहीं चुकाते। नहीं हैं। वे यदि उचित सेवा देते हैं तो साधुजीवी ५१ थे बहुत ही नीच और बेईमान हैं। हैं। कुछ सेवा नहीं देते सिर्फ अन्धश्रद्धा का __दूसरे उधारठग वे हैं जो उधार लेते समय लाभ उठाते हैं तो मोपलीची हैं। तो चुकाने का भाव रखते हैं पर पीछे जिनकी साधुवेप लेकर भी जो दीनता दिखाते हैं नियत बदल जाती है । इसलिये चुकाने की परिवे मिनाजीवी हैं। स्थिति प्राजाने पर भी नहीं चुकाते हैं। क्या करें ? बालबच्चों को भूखा मारे १ नहीं हो तो. पापजीविका-जीविकाके नामपर जो लोग कहां से दे १ आदि वाते कहने लगते हैं ? खर्च - ऐसा कार्य करते हैं जिससे पाप फैलता है वह का हिसाव पेश करने लगते हैं । ऐसे लोग मित. पाप जीविका है । पाप जीविका के कार्य समाज- व्यय से काम लें तो चुका सकते हैं पर नहीं लेते। हित के विरोधी होते हैं। जैसे-जूबा खेलने ___ मतलब यह कि कुछ न कुछ नियत बिगड़ खिलाने का धंधा पाप जीविका है। जानवरों को जाती है इसलिये चुकाने की यथासम्भव लडाने का धंधा पापजीविका है। कोशिश नहीं करते। ये भी नीच और घेईमान है। १० उगजीविका-विश्वासघात आदि करके जो लोग उधार देने का धन्धा नहीं करते, किसी को ठग लेना उपजीविका है। किन्तु किसी व्यक्तिको दुःख संकट में पड़ा जान

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