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पड़ती है। इसलिये कहना चाहिये कि तर्क ही अनन्त सिद्ध कर सकना है। क्योकि ऐसी कोई परवल और व्यापक प्रमाण है।
जगह नहीं है जिसके बाद जगह न हो, ऐसा कोई __परन्तु बहुत से लोग तर्क को तब तक समय नहीं है जिसके बाद समय न हो, इसमानते हैं जब तक वह उनकी मान्यताओ का परकार तर्क उन्हे अनन्त सिद्ध करदेता है। इस समर्थक होता है। जब तक उनकी मान्यताओ कार तर्क जहा निश्चित रूप से खंडन कर का खण्डन करने लगता है तब वे तर्क की निन्दा सकता है वहां खंडन कर देता है, जहा मंडन कर करने लगते हैं और भावना की दुहाई देते हुए सकता है वहां मण्डन कर देता है, जहां उसकी फहने लगते हैं. यह ! तक से क्या होता है, गति नही होती अर्थात जहां किसी बात का. वह तो धुद्धि का खेल है जैसा बनाओ बनजाता साधक हेतु नहीं मिलता वहां चुप रहजाता है। है, मानवी बुद्धि परिपूर्ण नहीं है। बाज एक तर्क जिस चाहे को सिद्ध कर देना, और जिस चाहे से एक बात सिद्ध होती है कल दूसरे तर्क से वह को आरमाणित कहदेना या कैसा भी धकवाद खण्डित होजाती है, असली और हद वस्तु को करने लगना यह सब तर्क नहीं है। हां! कभी भावना और श्रद्धा है। तर्क तो भावना का दास कभी कोई विशेष बुद्धिमान आदमी तकाभासों है, भावना स्वामिनी है, क्योकि जीवन के सारे का प्रयोग कर सत्य को असत्य या असत्य को काम भावना के अनुसार होते है। तर्कशास्त्री सत्य सिद्ध कर सकता है पर यह धात कभी कही महीनो में जो बात ढूढ़ नहीं पाते वह भावुक ही सम्भव है, वह टिकाऊ नहीं होती। सब आद
और श्रद्धाल दिनो में ढढजाते हैं। तर्क का क्षेत्र मियों को सब जगह चिरकाल तक धोखा नही सीमित है और उसके निर्णय अस्थिर हैं । भावना दिया जासकता। सच्चा तर्क हो तो क्रम प्रतिमाका क्षेत्र असीम है. सीधा है और उसमें स्थिरता शाली भी अपने से अधिक प्रतिभाशाली को
परास्त कर सकता है। हा! कभी कमी सत्य के इसरकार तर्क का विरोध करनेवालों को।
को एक एक अश को लेकर दो पक्ष लड़ने लगते हैं, : निम्नलिखित बातो पर विचार करना चाहिये।
तर्क दोनों सत्याशा का समर्थन करता है, इस१-श्रन्दाज बोधना या अपनी बात के लम
जिये तर्क विरोधी लोग तर्क को अस्थिर कहदेते र्थन में कोई उपमा देदेना तर्क नहीं है। तर्क
है पर इसमे तर्क का अपराध नहीं होता। वह ! कार्यकारण या वस्तुस्वभाव के नियत सम्बन्ध पर
तो दोनों सत्याशो को सावित करता है। ऐसे । अवलम्बित रहता है । तर्क के स्टान्त में भी
अवसर पर तर्क को गाली न देकर दोनों का सम. साध्यसाधन का नियत्त सम्बन्ध स्पष्ट होता है,
न्वय कर सत्य प्राप्त करना चाहिये। तब तक में इसलिये तर्क के निर्णय उच्छृखल या अस्थिर
उच्छृखलता अस्थिरता न मालूम होगी। नहीं कहे जासकते । तर्क किसी एमाण का
२-कभी कभी एक तर्क से निश्चित की हुई
बात दूसरे तर्क से कट जाती है पर उसका मुख्य विरोध नहीं करता । जहा उसकी गति नहीं होती। वह अपने आप अटक जाता है। जैसे-विश्व
कारण यह है कि पहिले मनुष्य तर्क के साथ कितना बड़ा है इस प्रश्न का उत्तर तर्क अभी
कुछ कल्पना का मिश्रण कर जाता है इसरकार नही देसकता क्योकि अों खर्बो' मीलो से जो
तर्क और कल्पना को मिलाकर एक निर्णय प्रकाश आता है उससे सिर्फ इतना ही मालूम
करता है और उसे तर्क का निश्चय समझ लेता होता है कि श्रनों खबरों मीलो तक विश्व है परन्तु है। बाद में जब वह कल्पना का अंश कटता ऐसा कोई चिन्ह नहीं मिलता जिससे उसके वाट है वो लोग कहने लगते हैं कि तर्क कट गया। अनन्त क्षेत्र तक शून्यता का पत्ता लगे इसलिये पर यह अपराध तर्क का नहीं है किन्तु तर्क के तर्क विश्व की सीमा बताने में अज्ञम कहा जास- साथ कल्पना के मिश्रण का है । जैसे-जय लोगों कता है। परन्तु क्षेत्र (जगह ) काल को वह ने देखा कि पदार्थ पृथ्वीतल के ऊपर गिरना है