Book Title: Satyamrut Drhsuti Kand
Author(s): Satya Samaj Sansthapak
Publisher: Satyashram Vardha

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Page 112
________________ बुराई है। प्रश्न-घटना विशेष पर कभी कभी सा (ईगो इका) है। तार प्रादि में जो न्या. अनुभव होता है कि वह पुगने अनुभवों को नष्ट व्यसन संकन होते हैं वह भी शन भाषा है पर सा कर देता है। जो जीवनभर हिनैषी होने से वेप से या किसी तरह क व्यवहार में अभिनय प्रिय रहा है वह अप्रिय सा मालूम होने लगना रगट करना मोन-भाया [चुन्मो को है। है, चिकित्सा क कष्ट से घबरा कर रोगी वैद्य को किसी भी तरह से जो गुरु होने का दावा भी बुरा समझने लगता है इसी प्रकार कोई करे किन्तु गुरु न हो वह कुगम है। कोई विद्वान अपने बुद्धि वैभव से सत्य को भी प्रश्न-हीन रू नहीं है उसे अगर कहना असत्य सिद्ध कर बना है, अगर ऐसे समय में चाहिये कुगुरु क्या घुद्धि को स्वतन्त्र छोड़ दिया जाय तो वैद्यको शत्र उत्ता-प्रगुरु तो पाप सभी हैं । पाको मानना पडेगा और सत्य को असन्य मानना गर न होने पर भी गुम होने का दावा कर वह पड़ेगा। वचक है इसलिये कुगर हैं। उत्तर-यह बुद्धि का नहीं मनका दोप है। पल-हा सहना है कि कोई गर न हो पर जिस समय मन सुध हो उस समय मनुष्य अपने से अच्छा हो तर उम गरु मानने में क्या सत्यासत्य का निर्णय नहीं कर सकना, कम स . कम जिस विषय में सोम है उस विषय मे नहीं। कर सकता या कदाचित् ही कर सकता है। इस. उत्तर- अपने से अच्छा है। माना ही लिये रोगी के चच्च मन के निर्णय का कुछ मूल्य मानना चाहिये कि वह अपने से अन्दा है। नहीं, रही बद्धि के विमोहित होन की बात सो अगर वह अन्दापन हमें भी अच्शा बनाने के विचारणीय विषय जैसा गम्भीर हो उसके लिए काम आता हो त। स्वगह मानना भी ठीक है पर उनना समय देना चाहिये और निष्पक्ष विचारक अमुरु आदमी से अच्छा होने के कारण कोई के नाम पर इतना कहना चाहिये कि अभी तो गुरुत्व का दावा करे तब वह कुारू ही है । वह इस बात का उत्तर नही सुमा है पर कुछ समय अपने से जितना अच्छा है उतना उनका पाहा बाद भी अगर न समझेगा, दूसा से चर्चा करने आदि होना चाहिये पर गुरु मान कर नहीं। पर भी अगर न मिलेगा तो अवश्य विचार खोटा रुपया पैसे की अपेक्षा अधिक कीमती बदल दंगा। काफी समय लगाने पर भी अगर होने पर भी बाजार में नहीं चलता क्याकि वह अपने विचार परीक्षा मे न ठहरे तो मोहवश या करया बन कर चलना चहता है । इसी प्रकार मद-वश उनसे चिपके न रहना चाहिये । अगर अगर हमसे सिफ कुछ अच्छा हाने पाहीजब गर कोई गुरु ऐसा पक्षपाती है तो वह कुगर है । जो घन कर चलना चाहता है तब खोटे उपयं की स्वय सत्य को नही पा सकना वह दूसरो को कैसे तरह निन्दनीय है । सत्य प्राप्त करायगा और सत्पथ पा चलायगा परन्तु यह भी ग्ययाल चाहिये कि पन्छेपन प्रश्न- कुगुरु किसे कहना चाहिये १ की निशानी २ वेर (जो) २ पढ़ (पम्मो]३ व्यर्थ उत्तर--जो गुरु नहीं है किन्तु श इ-भाषा क्रिया. [ नकातो ] और ४ व्यर्थ विद्या (नकबुयो) था मौन मावा द्वारा गुरु होने का दावा करता है ना का नहीं है। बहुत से लोग इनको गुरुत्व का चिन्ह वह गुरु है। समझते हैं पर यह गरु मूढता का परिणाम है। प्रराजभाषा और मौन-भाषा का क्या है नग्नता, पीले वस्त्र, सफेट वस्त्र, भगौं वस्त्र, जटा, मुंहपत्ति आदि अनेक तरह के जो मतलब साधुवेप है उन्हे गुरुता का या साधुना का चिन्ह उत्तर-शों से बोलकर या किसी प्रकार न समझना चाहिये । वेष तो सिर्फ अमुक संस्था , लिम्व का विचार परगद करना शन्त-मापा के प्रमाणित सहस्त्र होने की निशानी है पर किसी

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