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सत्यामृत
हो और उसे साफ पानी न दिया जाय या वर्षा यह कहना ठीक नहीं कि वैज्ञानिक युग होनेपर आसमान से बरसते हुए साफ पानी पीने आजाने से धर्मसंस्था की बखरत नहीं है । धर्म: का आग्रह किया जाय तो तब तक मनुष्य प्यासा संस्था को विकसित करने में विज्ञान का हाथ है न बैठा रहेगा वह गटर का भी गन्दा पानी पी पर उसे रखना न रखना विज्ञान के वश के बाहर लेगा। इसलिये उचित यह है कि जब तक वर्षा है। विज्ञान की दृष्टि से पिछड़े हुए जगत में भी नहीं होती और श्रादमी प्यासा है तब तक परि- धर्मसंस्था न हो यह सम्भव है। और विज्ञान का स्थिति के अनुसार जितना स्वच्छ पानी दिया दृष्टि से बड़े हुए जगत में भी धर्म की आवश्यकता सासके दिया जाय।
होसकती है । जैसे गणित रसायन आदि के शिक्षण २-यह कहना कि धर्म विज्ञान के साथ जाने पर भी काव्य की आवश्यकता मिट नहीं मेल नहीं बैठा सकता विलकुल गलत है। जगत माती उसी प्रकार विज्ञान के प्रसार से भी धर्म में जो नई नई धर्मसंस्थाएँ पैदा होती हैं उनके की आवश्यकता मिट नही सकती। हा । कान्य दो मुख्य काम होते हैं १-परिस्थिति के अनुसार को शैली बदलने और विकसित होने के समान नये आचार-विचार देना, ३-विज्ञान के साथ मेल धर्म की मी शैली बदलती और विकसित होता बैठाना। अपने युग के विज्ञान के साथ मेल है। इसलिये विज्ञान के श्रानेपर धर्म विकसित वैठाये बिना कोई वर्मसंस्था टिक नहीं सकती। होगा, मिटेगा नहीं। धर्म और विज्ञान का मेल टूटता है तब जय धर्मसस्था पुरानी और युगवाध होकर अपना पुनजन्म या कायाकल्प नहीं करती, और विजन धार्मिक सस्थाएँ पैदा नहीं होसकतीं और धार्मिक अपना कायाकल्प कर जाता है। इसलिये नई संस्थाएं पैदा होने का समय चलागया।' जब धर्मसंस्था की जरूरत होती है।
धर्मतीर्थों की आवश्यकता लोगो को महसूस हो 3-विज्ञान और धर्म परस्पर पूरक है।
रही है तब यह कैसे होसकता है कि कोई युगानुविज्ञान का काम कमाने का है धर्म का काम
रूप धर्मसस्था पैदा न हो। बाजार में किसी माल व्यवस्था करने का । कमाया न जाय तो व्यवस्था
की विक्री होरही हो, तब यह नहीं कहा जासकता का आधार हट जाय, और व्यवस्था न की जाय कि बाजार
कि बाजार में पुराना माल ही विकेगा नया न तो कमाना मिट्टी में मिलजाय : यथापि राय आयगा या न अनेगा। जिस साल की आवश्यसंस्था भी व्यवस्था का काम करती है. कताका अनुभव लोग कर रहे हा और उसे ले भी संस्था का मुख्य आधार शक्ति है और धर्म रहे हो वह अच्छे से अच्छा बनसकता होगा तो का मुख्य आधार सरकार है। संसार ठीक जरूर बनेगा। इसी प्रकार जब तक धर्मसस्था हो तो शक्ति का काफी दुरूपयोग होता है। राज्य को लोग अपनाये हुए है तब तक धर्मती नयेसस्था का कार्यक्षेत्र बाहर हैं और धर्मसस्था का नये और विकसित बनते रहेंगे। ब्राह्मसमाज भीतर । तुम नम्र बनो, कृतज रहो, शान्त रहो आन समाज सरीखी धर्मसस्थाएँ भी जय खडी दयालु मनो, परोपकार कर आदि कार्य का हासको तब इनस भी अधिक वैज्ञानिक धर्मलमही कगये जासकत, धर्म से कगय बासस्ते सस्था क्यो न बड़ी होगी। जब तक धर्म ६ : चाप यह समय पायगा या त्रासकता सस्थाओं की प्यावश्यकता बिलकुल नष्ट नहीं अब म बार राज्य मिलकर एक होजायेंगे परन्त होजाती और जब तक ऐसी कोई धर्मसंस्था पैदा जप ना या समय नहीं आया है नब तक नहीं होजाती जो उस जगत को पंग करदे जिसमे व्ययभा के कार्य में धर्म की आवश्यकता है, इस धर्मतीथ की जन्मत न होगी, तब तक युगानुरूप प्रकार यानी धर्म परस्पर पूरक रहेंगे। संस्था पैदा होगी और पैदा होना चाहिये।