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की एक अति सिद्ध होती है।
दूसरी जाति के न्याय का भी विरोध करता है । __इतना होने पर भी आज मनुष्य जाति अन्त में न्याय के पराजय और अन्याय के विजय अनेक माना में विभक्त है। इसके कारण कुछ कालो फल हो सकता है, वह मनुष्य-जाति को भी हो, परन्तु इससे जो अधर्म हो रहा है, जो ही भोगना पड़ता है। विनाश हो रहा है, दु:ख और अशान्ति का जो विवश होकर मनुष्य को कूपमंडूक बनना विस्तार हो रहा है, वह मनुष्य सरीखे बुद्धिमान पड़ता है, क्योंकि वह घर के बाहिर निकल कर प्राणी के लिये लज्जा की बात है। बुद्धि तो सजातीयों के अभाव से वहा टिक नहीं सकता। पशुओ मे भी होती है, परन्तु मनुष्य को बुद्धि जब सारी जाति की जाति इस विषय में विशेष कुछ दूर तक की बात विचार सका है। लेकिन उद्योग करती है, तब कहीं थोड़ा-बहुत क्षेत्र पढ़ता इस विषय में उसकी विचारकता व्यर्थ जाती है। परन्तु इस कार्य में शतानियों लग जाती हैं देखकर आश्चर्य और खेद होता है। तथा बाहिर निकलने पर भी कूपमंडूकता दूर
मनुष्य भी एक सामाजिक प्राणी है, बल्कि नहीं होना। अन्य प्राणियों की अपेक्षा वह बहुत अधिक
६-अपना क्षेत्र बढ़ाने के लिये दूसरी जातियां सामाजिक है । इसलिये सहयोग और प्रेम उसमें कुछ अधिक मात्रा में और विशाल रूप में होना का
का नाश करना पड़ता है। इससे दोनों तरफ के चाहिये । परन्तु जातिभेद की कामना करके मनुष्यों का नाश और धन नाश होता है तथा मनुष्य ने सहयोग के तत्व का नाश सा कर दिया चिरकाल के लिये वेर बन जाता है। है, इसमे अन्य अनेक अन्यायों और दुःखो की एक ऐसा अहंकार पैदा होता है जिसे सृष्टि कर डाली है। जाति की कल्पना से जो मनुष्य पाप नहीं समझना जब कि पात्मक कुत्र हारियाँ हुई हैं और होती है उनमें मुख्य तथा अनेक पापो का कारण होने से वह महा. मुख्य ये हैं।
पाप है। १-विवाह का क्षेत्र संकुचित हो जाना है। ईमानदार मनुष्यों में भी जातिभेद के इमसें योग्य चुनाव में कठिनाई होने लगी है। कारण अविश्वास रहता है। इससे सहयोग नहीं
और अल्पसंख्यक होने पर जाति का नाश हो होने पाता। इससे उन्नति रुकती है। लोकोप जाता है।
कारक संस्थाएं भी पारस्परिक उपेक्षा और वे २-कभी कमी जब युवक-युवती में श्रापस के कारण सारहीन तथा अकिञ्चित्कार हो जाती में प्रेम हो जाता है, और वह दाम्पस प धारण हैं। करना चाहता है, तब यह जातिमे की दीवाल इस प्रकार की अनेक हानियाँ है। यदि जनके जीवन का नाश कर देती है। या तो उनको आनिमेट की दुर्वासना को नष्ट कर दिया बार आत्महत्या करना पड़नी है अथवा बहिष्कृत तो इसमें सन्देह नहीं कि मनुष्य जाति के पं. जीवन व्यतीत करने से अनेक प्रकार की दुदेशा का एक बड़ा भारी भाग नष्ट हो जाय । । मोगना पडती है।
सुविधा के लिये कुटुम्त्री, सम्बधी तथा मित्र - 3-जाति के नामपर बने हुए दल लड-झगड़ की आवश्यकता प्रत्येक व्यक्ति को होती है, कर एक दूसरे का नाश करते हैं। न खुब चैन से उसकी रखना हुआ करे। ये सब रचनाएँ तो बैठते हैं, न दूसरो को चैन से बैठने देते हैं। क्तिक जीवन मे समाजाती हैं। इनमें कोई छ ।
४-जातीय पक्षपात के कारण मनुष्य अपनी गत बुराई नहीं है। सम्बन्ध तो चाहे जिस मनु सानि के अन्याय का भी पोपण करता है, और के साथ किया जा सस्ता है और उसे मित्र