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सत्यामृत
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इसीलिये गुड को न रोका जाय, हमारी चोरी दी जा सकती थी, किन्तु दूसरे वर्ण की कन्या होती है, खून होता है तो यह भी पूर्वजन्म के पहिले वर्णको दी जासकती थी। परन्तु यह रिवाज पाप का फल है इसीलिये चोरो और खूनियों को भी बहुत समय चल नहीं सकता था क्योकि न रोका जाय तो समाज की झ्या दुर्दशा हो। इससे शूद्र वर्ण को बहुत आपत्ति का सामना अछूत कहलाने वालों के साथ जो दुर्व्यवहार करना पड़ता था। शूद कन्याओं को अन्य वर्ण के किया जाता है वह अत्याचार है, इसे पाप फल लोग ले तो लेते थे, परन्तु देत नहीं थे, इमलिय कहकर नहीं टाला जासकता । अन्यथा मनुष्य शूद्रों को कन्याओं की कमी होना स्वाभाविक को न्याय, मलाई सुव्यवस्था करने का कोई अव
था । अमुक अश में वैश्या को भी इस कठिनाई सर ही न रह जायगा, मनुष्य की अनन्या पशुओं
का सामना करना पड़ता था । इसलिये एक दूसग से भी भयका हो जायगी।
रिवाज चल पड़ा कि ब्राह्मण, नत्रिय, वैश्य तो ___ धार्मिक अधिकारों की दि से मी धुनों अलोम प्रतिलाम रूपम विवाह सम्बन्ध करें, अळूनों में कोई जातिभेद नहीं है । अहिंसा, सत्य और शुद्र शूद्र के साथ ही करे। ईमान आदि धर्म हैं । धर्म के नाम पर चलने
प्रारंभ के तीन वर्षों के जीवन के माध्यम वाले अन्य आचार तो सब इन्हीं के साधन मात्र
में इतना अन्तर नही था कि एक वर्ष की कन्या है। अहिंसा, सत्य आदि के पालन का ठेका
दूसरे वर्ण के कुटुम्ब को सहन न कर सके। किसी भी जाति विशेप को नहीं दिया जासकता।
ब्राह्मण क्षत्रिय और वैश्य कुटुम्बा में त्रियों का अछून कहलानेवालों को यह नहीं कह सकते
कार्यक्षेत्र करीब करीव एक सरीखा ही रहता है , कि तुम सत्य मत बोलो, शील से मत रहो,
जब कि शूद्र वर्ष की स्त्रियों को अन्य वर्ण की अहिंसा का पालन मत करो। जब अहिंसा, सत्य श्रादि का अधिकार सब को है तत्र धर्म का मा
खियो की सेवा करने को जाना पड़ता है। इस कोई जंग नहीं है। जिसका अधिकार सबको न में नहीं आती थी।
विषमता के कारण अन्य वर्ग को त्रियों शुद्र वर्ण हो । इस प्रकार वर्णमवस्या के नामपर मनुष्य जाति के टुकडे करना, स्पृश्यास्पृश्य की पापमय
इससे यह तो मालूम होता ही है कि पुराने
समय में असवर्ण विवाह का निषेध नहीं था। वासना का सरना करना, महान अपराव है।
मानसिक कष्ट न हो. इस खयाल वर्ण-व्यवस्था का जिस प्रकार धार्मिक से शूद्रों के साथ प्रतिलोम विवाह नहीं होता था। अधिकारी से, छूने न छूने से, असहमोज श्रादि फिर भी स्वयंवर में इस नियम का पालन नहीं से कोई सम्बन्ध नहीं है, उसी प्रकार विवाह से किया जाता था, क्योकि स्वयवर मे वरका चुनाव भी कोई सम्बन्ध नहीं है। यह तो आजीविका कन्या ही करती थी। दूसरे लोग इस विषय में को सुव्यवस्था के लिये थी, इसलिये विवाह की सलाह रूपमे भो हस्तक्षेप नहीं कर सकते थे। कैर का इससे कोई सम्बन्ध नहीं है। परन्तु जम असवर्ण विवाह का विधान और रिवाज श्राओनिका के भैह से पूमाग्रता का सम्बन्ध होने पर मी से विवाह अल्पसंख्या में हर, यह जुड़ गया तब एक जटिल समस्या खड़ी हो गई। स्वाभाविक है, क्योकि विवाह सम्बन्ध मैत्री का मामा कुल में पैदा होनेवाली एक कन्या का एक उत्कृष्ट रूप हैं। इसीलिये मैत्री प्राय समान अगर ऐसे कुल में विवाह हो जो लोक मे सम्मान स्वभाव समान रहन सहन बालों में होती है। इस को इष्ट्रि से न देखा जाता हो तो इससे उसके चित्त कहावत के अनुसार सवर्ण विवाह अधिक होते को चोम होना स्वाभाविक है । इसलिये अनुलोम थे, असत्र विवाहो की संख्या घटने लगी और विवाह का रिवाज बन गया। इसके अनुसार घटते घटते यहाँ तक घटी कि ये बातें इतिहास की पहिले वर्ष की कन्या दूसरे वर्ण वाले को नहीं हो गई । परन्तु असवर्ण विवाह के विरोध में