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थीं उसी समय मिला। सत्याश्रम की इमारत के काम में कुछ मजदूरिने काम का रहीं थीं उनके पास एक आदमी आया और पूछने लगा कि क्या यहाँ कुछ काम मिलेगा। काम यहाँ नहीं था पर सीधा जवाब न देकर वे उसकी हँसी उड़ाने लगी- क्यो न मिलेगा ? तुम्हे न मिलेगा तो किसे मिलेगा । ऐस मे काम करो, अच्छा पगार मिलेगा, आदि। इस हँसी में व्यर्थ ही एक गरीब के मर्मस्थल को चोट पहुंचाई गई। इस प्रकार की हंसी साधारण लोगों के जीवन में बहुत होती है पर यह अनुचित है। साइकिल आदि से गिरने पर भी दर्शक लोग हंसी उड़ाने लगते हैं, देवी विपत्ति से भी लोग हंसी उड़ाने लगते हैं, अन्य विपत्ति आनेपर भी लोग हसी बड़ाने लगते हैं, यह सब रौद्र है। विनोद ऐसा होना चाहिये जिससे दोनों का दिल खुश हो। जीवन मे विनोद की जरूरत है जिसके जीवन में विनोद नहीं है वह मनहूस जीवन किसी काम का नहीं, पर विनोद सुप्रीतिक होना चाहिये । श्रावश्यकता वश शैक्षfor or fare भी हो सकता है पर रौद्रपन कभी नहीं होना चाहिये। इससे व्यर्थस्वार्थीपन प्रगट होता है।
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प्रश्न – विनोद सुरीति ही क्यों न हो उसमें कुछ न कुछ चोट तो पहुँचाई ही जाती है, तब हसी-मजाक जीवन का एक आवश्यक अंग क्यों समझा जाय ? एक कहावत है ' रोग की जड़ खाँसी, लडाई की जड़ हाँसी' इसजिये हसी तो हर हालत में स्याज्य ही है ।
उत्तर - सी परसन्नता का चिह्न और रसनता का कारण है, साथ ही इससे मनुष्य दुःख भी भूलता है इसलिये जीवन में इसकी कॉफी आवश्यकता है। हाँ, इसी मे चोट अवश्य पहुँ चती है, पर उससे दर्द नहीं मालूम होता बल्कि श्रानन्द आता है। जब हम किसी को शाबासी देने के लिये उसकी पीठ थपथपाते हैं तब भी उसकी पीठ पर कुछ चोट तो होती है पर उससे दर्द नहीं होता, इसी प्रकारे सुप्रीतिक विनोद की
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चोट भी होती है विनोद लड़ाई की भी जड़ है किन्तु लड़ाई तभी होती है जब वह विरोधक या रौद्र हो | शैक्षणिक विनोद भी लड़ाई की जड़ हो जाता है जब पात्रापात्र का विचार न किया जाय। हमने किसी को सुधारने की दृष्टि से विनोद किया, किन्तु उसको इससे अपना अपमान मालूम हुआ तो लड़ाई हो जायगी । इसलिये शैक्षणिक विनोद करते समय भी पात्र पान का और मर्यादा का विचार न भूलना चाहिये । सुरीतिक विनोद में भी इन बातों का विचार करना जरूरी है। इसी विनोद प्राय वरावरी वाला के साथ या छोटे के साथ किया जाता है। जिनके साथ अपना सम्बन्ध चादर पूजा का हो उनके साथ विनोद परिमित और अत्यन्त विवेकपूर्ण होना चाहिये। जिसकी प्रकृतिविनोद सहसके विनोद का आदर करे उसके साथ नोट करना चाहिये सब के साथ नहीं। विनोद भी एक कला है और बहुत सुन्दर कला है पर इसके दिखाने के लिये बहुत योग्यता मनोवैज्ञानिकता और हृदय शुद्धि की आवश्यकता है। इस प्रकार कलावान होकर जो विनोद करता है वह व्यर्थस्वार्थी से बिलकुल उल्टा अर्थात विश्वहिवार्थी है।
२ स्वार्थी (लुम्भ ) - जो अपने स्वार्थ के लिये दूसरों के न्यायोचित स्वार्थ की भी पर्चाह नहीं करते वे स्वार्थी हैं। चोर बदमाश मिध्याभाषी विश्वासघातक हिंसक आदि सच स्वर्थी हैं जगत के अधिकाश प्राणी स्वार्थी ही होते हैं स्वार्थीपन ही सकल पापों की जड़ है।
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---यस्वार्थी और स्वार्थी में अधिक
पापी कौन है ?
उत्तर - जगत में व्यर्थ स्वार्थीपनकी अपेक्षा स्वार्थीपन ही अधिक है, पर विकास की दृष्टि से व्यर्थस्वार्थीपन निम्न श्र ेणी का है इसमें असंयम या पाप की मात्रा भी अधिक है । व्यर्थस्वार्थीपन स्वार्थीपन की अपेक्षा अधिक भयंकर है | स्वार्थी की गतिविधि से परिचित होना जितना कठिन है उससे कई गुणा कठिन व्यर्थस्वार्थी की गति - विधि से परिचित होना है ।
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