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তখার
प्रश्न-टोना टोटका अपशकुन आदि करने. वरह से ये हैं तो स्वार्थी ही. पर अन्तर इतना वाले स्वार्थी हैं या अन्धस्वार्थी । अपशकुन आदि ही है कि जहां स्वार्थी परोपकार की बिलकुज्ञ निष्फल होने से यहाँ व्यर्णस्वार्थीपन ही मानना पर्वाह नहीं करता वहा स्वार्थ पधान व्यक्ति कुछ चाहिये।
ख्याल रखता है। अपना कुछ नुकसान न हो उत्तर- यह स्वार्थीपन ही है क्योंकि ये और परोपकारी बनने का गौरव मिलता हो तो काम किसी ऐसे स्वार्थ के लिये किये जाते है जिसे क्या बुराई है ? यही इनकी विचारधारा रहती व्यर्थ नहीं कहा जा सकता ! भले ही उस से है। बड़े बड़े दानवीरों और जनसेवकों में से भी सफलता न मिलती हो। इससे मूढ़त्ता या अज्ञान बहुत कम इस श्रेणी के ऊपर उठ पाते हैं। ये का विशेष परिचय मिलता है असंयम तो स्वार्थी लोग स्वार्थ के लिये अन्याय भी कर सकते हैं। के बराबर ही है। व्यन्विार्थी अधिक असं.
४ समस्वार्थी ( सम्मलम्भर)-जिनका स्वार्थ यमी है।
और परार्थ का पलड़ा बराबर है वे समस्वार्थी हैं। स्वार्थी और व्यर्थस्वार्थी पूर्ण असंयमी और मूढ होते हैं वे भविष्य के विषय में भी कुछ
ये त्यागी नहीं होते दानी होते हैं पर अपने स्वार्थ सोच विचार नहीं करते, अपने स्वार्थीपन के का खयाल बराबर रखते हैं। फिर भी स्वार्थकारण मानव समाज का सर्वनाश तक किया प्रधान को अपना ये काफी ऊँचे है क्योकि भले करते हैं भले ही इसमें उनका भी सर्वनाश क्या ही इनक जीवन में परोपकार की मुख्यता न हो न हो जाय।
पर इतनी बात अवश्य है कि ये स्वार्थ के लिये . स्वार्थीपन व्यक्तिगत रूप में भी होता है
ना किसी पर अन्याय न करेंगे। भले के जिय और सामूहिक रूप में भी होता है। एक राष्ट्र
मले, और बुरे के लिये बुरे बनेगे। स्वार्थः दूसरे राष्ट्र पर जब अत्याचार या अन्याय करता
प्रधान से इनमें यह बड़ा भारी अन्तर है। बाकी
ये स्वाप्रिधान के समान है। है तब सामूहिक स्वार्थीपन होता है। दुनिया में - अमोतक अधिकाश राष्ट्र और अधिकाश जातियों की अपेक्षा परोपकार को प्रधानता देत हैं । जगत अमोतक अधिकाश राष्ट्र और अधिकागि ५पराधिान (भचोचिन्दर)-ये स्वार्थ में ऐसा स्वार्थीपन भरा हुआ है। इसीलिये यह को सेवा के लिये सर्वस्व का त्याग कर जाते हैं जगत् नरक के समान बना हुआ है। इससे बारी यश अपयश की भी पर्वाह नहीं करते पर इसके वारी से सभी व्यक्तियों समो जातियों और सभी बदले में वे इस जन्म में नहीं तो परलोक में कुछ राष्ट्रों को पाप का फल भोगना पड़ रहा है। चाहते हैं स्वर्ग आदि की आशा ईश्वर या खुदा
३ स्वार्थ-प्रधान (लु भो चिन्दर)- स्वार्थ का दर्बार इनकी नजरों में रहता है। ये परोप प्रधान वे व्यक्ति है जो स्वार्थ की रक्षा करते हुए कारी हैं जिनका परोपकार करते हैं उनसे बदला कुछ परोपकार के कार्य भी कर जाते हैं। ऐसे भी नहीं चाहते, यह बात समस्वर्थी में नहीं होती, लोग दुनिया की भलाई की दृष्टि से दान या सेवा पर परतोक श्रादि का अवलम्बन न हो तो इनका न करेंगे किन्तु उसमें यश मिलता होगा, पूजा परोपकार खड़ा नहीं रह सकता। ये सिर्फ सत्य मिलनी होगी, तो दान करेंगे। स्वार्थ और परार्थ या विश्वहित के भरोसे अपना परोपकारी जीवन में परसर विरोध उपस्थित हो तो पराध को खड़ा नहीं कर सकते। कोई न कोई तर्कहीन बात तिलाजलि देकर स्वार्थ की ही रक्षा करेंगे। परो इनको श्रद्धा का सहारा होती है। विश्वहित का पकार सिर्फ वहीं करेंगे जहा स्वार्थ को पकान मौलिक आधार इनका कमजोर होता है जिसे ये लगता हो या चित्तमा धक्का लगता हो उसकी श्रद्धा से पकड़कर रखते हैं। वाको जहां तक कसर किसी दूसरे देग से निकल पाती हो । एक संयन याग आदि का सम्बन्ध है ये परार्थप्रधान