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जीवन दयनीय है।
७ धर्मार्थसेवी ( धर्मकजर ) - सदाचारी हैं, जगत से जो कुछ लेते हैं उसके बदले में कुछ देते हैं पर जिनका जीवन आनन्द हीन है। आराम नहीं लेते, एक तरह का असन्तोष बना रहता है। धर्मार्थकामसेवी (धर्म काजचिंगर ) - तीनो जीवार्थो का यथायोग्य समन्वय करने से इनका जीवन व्यवहार में सफल होता है पर पूर्ण सफल नहीं होता। असुविधाओं का कष्ट इनके मन में बना ही रहता है। वह मोक्ष सेवा से ही दूर हो सकता है।
६ धर्ममोक्षसवी (धर्मजिन्नर ) - इस श्रेणी से वे योगी आते हैं जो दुःखों की पर्वाह नहीं करते, समाज की पर्वाह नहीं करते, समाज को कुछ नहीं देते, जिन्हें प्राकृतिक आनन्द की भी air नहीं और यश की भी पर्वाह होती । इनका जीवन बहुत ऊँचा है पर आदर्श नहीं।
१० धर्म-काम-मोक्षसेवी (धर्मचिंग जिन्नर ) - सदाचारी और निर्लिप्त जीवन बितानेवाले, प्रकृति का आनन्द लुटने वाले, अथवा यश फैलाने वाले, इस तरह इनका जीवन अच्छा है। पर एक त्रुटि है कि समाज को कुछ सेवा नहीं देते इसलिय ऐसा काम भी नहीं रखते जिसके लिये समाज से कुछ लिया जाय। इनका काम ऐसा है जिसके लिये समाज को कुछ खर्च नहीं करना पड़ता । वह प्राकृतिक होता है।
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११ धर्मार्थ-मोक्षसेवी (धर्म काज चिन्नर ) - इस श्रेणी में वे महात्मा आते हैं जो पूर्ण सदाचारी हैं पूर्ण निर्लिप्त हैं कोई भी विपति जिन्हें ५ चलित नहीं कर पाती । जो कुछ लेते हैं उससे कई गुणा समाज को देते हैं इस प्रकार अर्थ जीवार्ध का सेवन करते हैं। पर काम की तरफ जिनका लक्ष्य नहीं जाता । प्राकृतिक आनन्द उठाने में भी जिनकी रुचि नहीं होती । श्रनाarer कष्ट भी उठाने में तत्पर रहते हैं। काम से जिन्हे एक तरह की रुचि है। सामाजिक वातावरण का प्रभाव उन्हे fear fro
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काम की तरफ भी नहीं झुकने देता। ऐसे महात्मा जगत के महान सेवक हैं। वे पूज्य है बहुत अशों तक आदर्श भी हैं फिर भी पूर्ण आदर्श नहीं ।
प्रश्न- २
-यदि वे काम जीवार्थ का सेवन नहीं करते तो अर्थ जीवा का सेवन किसलिये करते हैं।
उत्तर- इन लोगों का अर्थ- जीवार्थ अर्थसंग्रह के रूप में नहीं होता। वे जगत की सेवा करते हैं बदले में जीवित रहने के लिये नाममात्र का लेते हैं। मुफ्त में कुछ नहीं लेते यही इनका जीवार्थ सेवन है ।
प्रश्न- क्या ऐसे लोग प्रकृति की शोभा न देखते होंगे क्या कभी संगीत न सुनते होगे। कम से कम यश तो इन्हें मिलता ही होगा क्या यह सब काम जीवार्थ का सेवन नहीं है ?
उत्तर- पर इस श्रेणी मे बहुत से प्राणी ऐसे होते हैं जो यश की तरफ रुचि तो रखते ही नहीं है पर यश पाते भी नहीं हैं। दुनिया उनके महत्व को नहीं जान पाती । संगीत और सुन्दर दृश्य भी इन्हे पसन्द नहीं हैं। जबर्दस्ती श्रा जाय तो
यह बात दूसरी है। यह काम जीवार्थ का सेवन नहीं है। तो जगत में ऐसा कौन व्यक्ति है जिसने जीवन में स्वादिष्ट भोजन न किया हो या सुन्दर स्वर न सुना हो अथवा किसी न किसी श्रानन्ददायी विषय से सम्पर्क न हुआ हो । पर इतने में ही काम जीवार्थ की सेवा नहीं कही जा सकती। अपनी परिस्थिति और साधनों के अनु कूल ही काम जीवार्थं की सेवा का अर्थ लगाया जायगा। एक लक्षाधिपति और एक farari का काम जीवार्थ एकसा न होगा। उन दोनों के साधनों का प्रभाव उनके काम पर पड़ेगा सर्वश कामहीन जीवन तो सम्भव है । योग्य कामहीन होने से ही किसी का जीवन कामहीन कहलाना
। इस श्रेणी के मनुष्यों का जीवन योग्यकाम हीन होता है इसीलिये इन्हें धर्मार्थगो सेवी कहा गया है।
१२ सर्वजीवार्थसेवी (मीटर)- चारा जीवार्थो का इनके जीवन में योग्य स्थान रहता