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खत्यामृत
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है वह उस्थित होने की कोशिश करता ही है। सोता हुआ मनुष्य यदि आग पड़े तो वह ____ बहुत से मनुष्य यह सोचा करते हैं कि मैं अवश्य उठने की चेष्टा करेगा ! अगर उठने के अपना अमुक कार्य करलू' फिर जनसेवा के लिये लिये उसका प्रयत्न बन्द हो गया हो तो समझना यो करूंगा और त्यों करूंगा। वे जीवन भई यह
चाहिये कि वास्तव में वह जागा ही नहीं है । सोचते ही रहते हैं पर उनका अमुक काम पूरा
इसी प्रकार यहा पर भी जामत श्रेणी का मनुष्य नही हो पाना और उनका जीवन समाप्त होजाता
उठने का अगर प्रयत्नान करे तो समझ लेना
चाहिये कि वह जाग्रत नहीं है। है । यह ठीक है कि मनुष्य को परिस्थिति का " विचार करना पड़ता है, साधन जुटाने पड़ते हैं,
४ उस्थित (सुट)- जो मनुष्य वास्तविक पहिले अपने पैरों पर खड़ा हो जाना पड़ता है
१ कर्मठ है, जनसेवा के मार्ग में आगे बढ़ा है, जनपर साथ ही यह भी ठीक है कि ज्यों ज्यों उसका
सेवा जिसके जीवन की आवश्यकता बनाई है, वह अमुक काम पूर्णता की ओर बढ़ता जाता है क्यों
यो उस्थित है। इसके पुराने संस्कार इतने प्रबल श्यों वह जन सेवा सम्बन्धी कम्य मार्ग भी नहीं होते और न स्वार्थ-वासना इतनी पबल बढ़ता जाता है। अब तक उसका स्वार्था पूरी न
होती है कि उसके लिये वह फर्तव्य पर सर्वथा हो जाय तब तक वह कर्तव्य का योग्य मात्रा में
अपेक्षा कर सके। जनसेवा के लिये वह पूर्ण त्याग श्रीगणेश ही न करे तो यं जामत श्रेणी के मध्य नही करता परन्तु मर्यादित त्याग अवश्य करता के चिह नही हैं किन्तुं सुप्त श्रेणी के चिह हैं।
है। सेवा के क्षेत्र में वह महानती नहीं है पर जाग्रत श्रेणी का मनुष्य न नव मन तेज होय
देशवती अवश्य है। जनसेवक होने से उसमें राधा नाचे को कहावत चरितार्थ नहीं करता।
सदाचार भी आगया है। क्योंकि जो मनुष्य यह ज्यों क्या साधन बढ़ते जाते हैं त्यो त्यो कर्तव्य
सदाचारी न हो वह सच्चा जनसेवक नहीं बन में भी बढ़ता जाता है। और इस प्रकार बहुत
सकता । इस प्रकार इसमें पर्याप्त मात्रा में सदाही शीघ्र उत्थित श्रेणी में पहुंच जाता है । और के क्षेत्र में यही इसका उत्थान है।
चार भी है, त्याग भी है, निर्भयता भी है । जीवन फिर सलन्त धन आया है।
___ जाग्रत श्रेणी का मनु य अपनी त्रुटियों को बाट देखने को जिनको बीमारी हो गई है समझना भी था स्वीकार भी करता था परन्तु वे जीवन के अन्त तक कुछ काम नहीं कर पाते । क्योंकि उनका अमुक काम जबतक पूरा होता है
उन्हें यथेष्ट मात्रा में दूर नहीं कर पाता था, जब तब तक जीवन के वे दिन निकल जाते है जिन।
कि यह दूर कर पाता है। यह जाग्रत श्रेणी के दिनी कुछ करने का उत्साह रहता है। विन पीस कर्तव्य की इतिश्री न हो जायगी किन्तु
मनुष्य की तरह दानादि वो करेगा पर उतने में बाधाओं का सामना करने की कुछ ताकत रहती है। अमुक काम पूरा करने तक उनमें बुढ़ापा ।
यह निर्भयता से सेवा के क्षेत्र में आगे बढ़ेगी। आजाता है फिर 'गई बहुत, रही थोड़ी, की बात संलग्न (सिलग)- यह साधु है। यह याद आने लगती है। इस समय किसी सेवा का अधिक से अधिक देकर कम से कम लेता है। कार्य शुरू करना और बीवन भर जो आदत पूर्ण सदाचारी है। जनहित के सामने इसके पड़ी रही है उसके विपरीव पलना कठिन होता ऐहिक स्वार्थ गौण हो गये हैं। यह अनावश्यक है। जो जापत श्रेणी का मनुष्य है उसमें यह कष्ट नहीं सहता पर जनहित के लिये यथेष्ट, फार घाट देखने को बीमारी न होगी। वह अपनी सहने के लिये तैयार रहता है। अपरिग्रही होत शक्ति को बल्दी से जल्दी उपयोग में लाना है। स्वार्थ के लिये धन संचय इसका लक्ष्य नह चाहेगा।
होता । जनसेवा के लिये इसका संचय होता है