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घटकाड
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जो मनुष्य अपने व्यवहार से हमारा दिल दहला छा गया. अब अगर इनकी भक्ति की जाय तो देता है उसकी पूजा करनेवाला भयभक्त है। क्या यह आतंकमस्ति कहलायगी ? और क्या श्राध्यात्मिक दृष्टि से यह सब से नीची श्रेणी है यह अधम श्रेणी की होने से निन्दनीय होगी। जो प्रायः पशुओं में पाई जाती है। और साधा. उत्तर-आतंक से इनकी भक्ति करना रण मनुष्य अभी पशुओं से बहुत ऊँचा नहीं अच्छा नहीं है। किन्तु लोकहित के शत्रुओं को उठ पाया है इसलिये साधारण मनुष्य में भी पाई इनने नष्ट किया और इससे लोकहित किया इस जाती है।
दृष्टि से अवश्य ही इनकी भक्ति की जा सकती भय से मतलब यहां भक्तिमय या विरक्ति- है। यह आतंकभक्ति नहीं है किन्तु कल्याण भय से नहीं है । भोगभय वियोगमय आदि भक्ति या सत्यमक्ति है। यह उत्तम श्रेणी की है। अपाय भयों से है। भय से अर्थात् डरकर किसी स्वार्थभक्त (लु भक्त )-अपने स्वार्थ की भक्ति करना मनुष्यता को नष्ट करना है। के कारण किसी की भक्ति करनेवाला स्वार्थभक्त
जब मनुष्य भय से भक्ति करने लगता है है यह भक्ति प्राय. नौकरों में मालिकों के प्रति तब शक्तिशाली लोग शक्ति का उपयोग दूसरी पाई जाती है। को डराने या अत्याचार मे करने लगते हैं वे प्रेमी इस भक्ति में खराबी यह है कि इसमें बनने की कोशिश नहीं करते। इस प्रकार भय- न्याय अन्याय उचित अनुचित का विचार नहीं भक्ति अत्याचारियों की वृद्धि करने में सहायक रहता है। और स्वार्थ को धक्का लगने पर यह होने से पाप है।
नष्ट हो जाती है। २ आतंक भक्त (डाँडभक्त)- जो लोग प्रश्नबहत से स्वामिभक्त कृते या घोडे दुनिया पर आतंक फैलाते हैं वे दुनिया की सेवा या अन्य जानवर या मनुष्य ऐसे होते हैं जो नहीं करते सिर्फ शक्ति का प्रदर्शन करते हैं उनकी प्राण देकर भी अपने अपने स्वामी की रक्षा करते पूजा भक्ति करनेवाला आतंकमक्त है। बड़े-बड़े हैं। जैसे चेटक ने राणा प्रताप की की थी, हाथी दिग्विजयी सम्राटों या सेनानायको की भक्ति ने सम्राट् पोरस की की थी, इसे क्या स्वार्थभक्ति पाकिमक्ति है। यद्यपि यह भी एक तरह की कहकर अधम श्रेणी की कहना चाहिये ? इस भयभक्ति है पर यहा भयभक्ति से इसमें अन्तर प्रकार की भक्ति से तो इतिहास में भी स्थान यह रक्खा गया कि है कि भयभक्ति अपने ऊपर मिलता है इसे अथम श्रेणी की भक्ति कैसे कह
आये हुए भय से होती है और श्रातकभक्ति वह सकते हैं ? है जहा अपने ऊपर आये हुए मय से सम्बन्ध उत्तर-यह स्वार्थमक्ति नहीं कृतमता या नहीं रहता किन्तु जिन लोगो ने कहीं भी और कर्तव्यतत्परता है । अगर स्वार्थभक्ति होती तो कमी भी समाज के अपर आतंक फैलाया होता ये प्राण देकर स्वामी की रक्षा न करते । स्वार्थहै उनकी भक्ति होती है। चंगेअखाँ नादिरशाह भक्ति वहीं है नहा स्वार्थ के नष्ट होते ही मनुष्य या और भी ऐसे लोग जितने निरपराधी, लोगी गुणानुराग कृतज्ञता न्याय आदि को भूलकर पर आतंक फैलाया हो उनकी वीरपूजा के नाम भक्ति छोड बैठे। प्रताप की रक्षा करने वाले पर मति करना आतंकभक्ति है। भयभक्ति में जो चेटक में कर्तव्यतत्परता थी इसलिये इसने प्राय दोष है वही दोष इसमें भी है।
देकर भी प्रताप की रक्षा की ! यह न समझना प्रश्न-आतंक तो सज्जनों का भी होता चाहिये कि जानवरों में करीव्यतत्परता नहीं हो है। जैसे परखीलम्पट रावण के दल पर म राग सकती। जानवरों में पाडित्य भले ही न हो का भातक छा गया, या सामयिक सुधार के परन्तु कृतज्ञता प्रेम भक्ति श्रादि भानया के विरोधी काफिरों पर हजरत मुहम्मद का आतक रूप रह सकते हैं।