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बदल दिया जाय तो भी कोई हानि नहीं है। घर- प्रारम्भ में अवश्य ही निकत होगी, क्योंकि जमाई के विषय में यही गति काम में लाई जा हरएक जाति का प्रत्येक मनुष्य इस कार्य को सकती है। इसे मानापमान न समझकर समाज तैयार नहीं होता इसलिये विजातीय विवाह का को सुव्यवस्था के लिये किया गया त्याग सम. क्षेत्र सझातीय विवाह से भी छोटा मालूम होता झना चाहिये । यह त्याग चाहे स्त्री को करना है। परन्तु अन्त में विजातीय विवाह का क्षेत्र पडे चाहे पुरुष को। अगर इस प्रकार पदपद पर बदेगा। प्रारम्भ में ओ पीड़ा होती हो उसे सहन मानापमान की कल्पना की जायगी तो समाज करना चाहिये । तथा इस सुप्रथा के प्रचारार्थ का निर्माण करना असमाव हो जायगा। थोड़ी बहुन मात्रा में ऐसी विषमता को सहन
स्र, विजातीय विवाह से जातियों का करना चाहिये जो विवाह के बाद थोड़े से प्रयत्न नाश नहीं होता, जिससे सगठन न हो सके।
से सुधारी आ सकती हो। तथा इन छोटे छोटे संगठनों के अभाव से कुछ .
श्त-विजातीय विवाह से सन्तान संकर
श्व-विजातीय हानि नहीं होती बल्कि सगठन का क्षेत्र बढ जाने हो जायगी। माँ की एक जाति, बाप की दूसरी से संगठन विशाल होता है।
जाति । नो सन्तान की तीसरी खिचड़ी जाति ___प्रभ-विवाह के लिये जातियों की सीमा
होगी यह सब ठीक नहीं मालूम होना। सोड दी जायगी तो अनमेल विवाह बहुत होंगे, जो
उत्तर-माँ का एक गोत्र, बाप का दूसरा
सन्तानका खिवडा क्यांकि छोटी जातियों में पारस्परिक परिचय पत्र नहीं होता, उसी प्रकार खिचड़ी जाति र अधिक होने से एक दूसरे को अच्छी तरह समझ होगी। पित परम्परा से जिस प्रकार गोत्र चला कर विवाह किया जा सकता है । विजातीय विवाह में परिचय को गुजाइश कहाँ है ? इस. दसरी बात यह है कि जब तक इन जातिया की
आता है उसी प्रकार जाति भी चली आयगी। लिये अनमेल विवाह या धिपम विवाह बहुत कल्पना का भूत सिर पर सवार है तभातक होंगे।
खिचड़ी और खिचड़ा को चिन्ता है। जब कि उत्तर--विजातीय विवाह का अर्थ अपरि. वास्तव में इनका कोई मौलिक अस्तित्व ही नहीं चित के साथ विवाह नहीं है। इन छोटी जातियो है तब माँ बाप को दो जातियों ही कही हुई के व जुदे जुदे देश या राष्ट्र नहीं है कि परि. जिनके संकर की बात कही जाय ? इन जातिया चय क्षेत्र से जातियों सीमित रहे। हमारा पडौसी की कोई शारीरिक या मानसिक विशेषता नहीं है चाहे वह दूसरी जातिका हो, उसका जितना परि जिससे इनमे जुदापन माना जाय। चय हमें हो सकता है उतना परिचय अपनी -मन में प्रेम ही क्यो न पैदा किया जाति के दूरस्थ व्यक्ति से नहीं हो सकता है यह जाय, नातिपाति तोड़ने से क्या फायदा आवश्यक है कि विवाह के पहिले वर कन्या एक उत्तर-प्रेम की भी आवश्यकता है और दूसरे के स्वभाव शिक्षण आदि से परिचित हो जातिपाति तोड़ने की भी अावश्यकता है, बल्कि नॉय, परन्तु ऐसा परिचय तो विजातीयों में भी प्रेम को व्यवहार में लाने के लिये जातिपाति परत है और सजातीयों में भी कठिन है। सच तोड़ना आवश्यक है। बहुत से लोगो में प्रेम पूछा जाय तो सनातीय विवाह में अल्प क्षेत्र होने पैदा होजाता है पर जातिपाति के कारण सहयोग न अनमेल विवाह अधिक होते हैं। विजातीय नहीं होपाता है। दोनों की अपनी अपनी उपववाह में चुनाव का क्षेत्र अधिक हो जायगा योगिता है। नो प्रेम तो पशुओं से भी होजाता सलिये अनमेल विवाह की सम्भावना कम है पर इससे जातिपाधि टूटने से होनवाजा सह
योग नहीं होनाता।