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शक्ति लगाता ही रहता है। विपत्तियों उसके विपत् विजय की अपेचा विरोध विजय म उत्साह को मार नहीं सकती यही उसकी विपत. मनोवल की विशेष प्रावश्यकता है। विपत विजय विजय है।
में जनता की सहानुभूति का बल मिलता है २ विरोध-विजय ( फूलुरो जयो)- जनसेवा परन्तु विरोध विजय में चल नहीं मिलता, या और आत्म-विकास के काम तो ऐसे होते है कम मिलता है। जिनमें विपत्तियों भले ही रहे पर विरोर नहीं ३ उपेक्षा विजय (बटो जयो)-लोजिस होता या नाममात्र का होता है। आप किसी विरोध से नहीं गिरापाते उसे उपेना से गिगने रोगी का इलाज करे कोई काव्य लिखें किसी को की कोशिश करते हैं। अगर मनुष्य में पर्याप्त धान दें परिचर्या करें इत्यादि कामो में शारीरिक मनोबल हो तो विरोच पर वह विजय पा जाना या आर्थिक विपत्ति की अधिक सम्भावना है
है परन्तु उपेक्षा पर विजय पाना फिर भी कठिन
परन्तु विरोध की कम । पर सामाजिक रूढियों को हटाने
१. सना है। विरोध में संघर्ष गदा होता है उससे का प्रयल करें, लोगों के विगडे विचार सुधारने
गति मिलती है पर उपेना से मनुष्य भूखों मर की कोशिश करे तो विरोध की अधिक सम्भा
जाता है। पानी में प्रवाह के विरुद्ध भी नेरा जा धना है। योगी इस विरोध की पवाह नहीं भी तैराक को गुवाइश है, पर शून्य में, जहा
सकता है, यद्यपि इसके लिये शनि चाहिय, पिर करता । न तो वह विरोधिया पर क्रोध करना है कोई विरोध नहीं करता, अच्छा से अच्छा तैराक और न उनकी शक्ति के आगे झुकता है । विरोध भी नहीं तो पाता। पेक्षाविजय भी यही सब को वह उपेक्षा और अपनी क्रियाशीलता के द्वारा से बड़ी कठिनाई है । इसस काकतो साधनहीन तिम कर देता है। उसके दिल पर कोई एसा और निरुत्साह होकर मर जाता है। पर योगी प्रभाव नही पड़ना जो उसको पथ से विमुन्म इस उपेक्षा पर भी विजय पाता है क्योंकि उस करदे।
कर्तव्या का ही ध्यान रता है, दुनिया की दृष्टि प्रश्न-वैद्य भी रोगी के विरोध की पर्वाह की या सफलता असफलता की वह पर्वाह नहीं करता है, उसका मन रखने की कोशिश करता है, करना इसी प्रकार समाजसेवक को क्यो न करना
उपेक्षा भी दो तरह की होती है-एक कृत्रिम चाहिये।
दुसरी अत्रिम । जो उपेक्षा जानबूझकर की ___ उत्तर विरोध पर विजय पाने के लये
जानी है, जिसमें विरोध रूप में भी सहयोग न जिस नीति की या धैर्य की आवश्यकता है उसका
देने की भावना रहनी है वह कृत्रिम उपेक्षा है। उपयोग योगी करता ही है। जैसे वैद्य गेगी का
अकृत्रिम उपेक्षा अनजान में होती है। योगी मन रखने की कोशिश करता है वह रोगी की
अपने काम में एक प्रकार के श्रानन्द का अनुभव चिकित्सा के लिये, न कि रोगी के विरोध के
करता है और उसी आनन्द में उसे पर्याप्त संतोष डर से । वैद्य के मनमे भय नहीं हिताकाक्षा
प्राप्त हो जाता है इसलिये कोई उस पर उपेक्षा होती है उसी प्रकार योगी विरोध से डरता नहीं
करे तो उसे इसकी पर्वाह नहीं होती इस प्रकार है हिताकाक्षा क वश से नीति से काम लेता है।
उपेक्षा पर विनय करके वह कर्तव्य करता
रहता है। जो लोग सन्मान या कीर्तिकाक्षा के वश के
प्रश्न-कोई कोई सेवाएँ ऐसी होती है कि कारण या पैसे के कारण विरोध से डरते है जनता की उपेक्षा हो तो उनका कुछ,असर नहीं परन्तु दुहाई देते हैं नीति की, वे अशक्त भीत रह जाता। जनता को जगाना ही सेवा कार्य हो था कायर तो है ही, साथ ही दम्भी भी हैं। वे और जनना ही उपेक्षा करे वो ऐसी निष्फल सेवा योगियों से उल्टे हैं।
में शक्ति लगाने से क्या लाभ योगी तो विवेकी