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धनाया जा सकता है। इसलिय इसमें जन्मगत यह वर्णभेट मौलिक है, यह बात कोई सिद्ध या उसके समान करता नहीं है और न इसका नही कर सकता । जहा हम रहते हैं, वहां के जलक्षेत्र हनना विशान हो सत्ता है कि समाजको चायु का जो प्रभाव हमारे शरीर पर पड़ता है, सुब्ध करन वाला बुरा असर डाल सकें। उसीसे हम काले बोरे आदि बन जाते हैं। वही
रंग सन्तान प्रति सन्तान से आगे की पीढ़ी को जातिभवी कल्पना के द्वार अगरियन है मिलता जाता है। परन्तु अगर जलवायु प्रतिकूल ग्राहकार का पुजारी यह मनुध्य-प्राणी न जाने किनने ढंग से जानिमद की पूजा किया करता
हो तो कई पीढियोंमें वह बिलकुल बदल जाता है। है। उन सबका गिताना तो कठिन है और उनको
हा, इसमें सैकड़ों वर्ष अवश्य लग जाते है क्योंकि गिनाने की इननी जारत भी नहीं है, क्योंकि
जलवायु का प्रभाव वाहिरी होता है और माता
पिताके ग्लवीर्यका प्रभाव भीतरी। परन्तु मौलिक आनिम के दुर हो जाने से उसके विवियरुप
रूप में यह रंग-मेह शीत उष्ण आदि वातावरण दूर हो जाने हैं। फिर भी स्पष्टता के लिये ना. काही फल है। गोरी जानियाँ अगर गरम rry तौरपर उनपर विचार कर लेना इचिन देशभइसजाँय तो कुन शनादियों के बाद व है. जिससे यह मालूम हो जाय कि किस तरह का जातिभंट किस तरह की हानि कर रहा है,
काली हो जायगी और काली जातियों अगर और उसे हटाने के लिये हमें क्या करना चाहिये।
ठंडे देशा में बस जाय तो वे कुछ शादियों क
बाद गोरी हो जायगी। इसलिये काले गोरे श्रादि समंद (गोधको )-जिन लोगों के बहा भेदों से मनुष्य-जाति के टुकड़े कर डालना, छोटा होटा जानिभेद नहीं है, उनके यहा भी भरी न्याय की पहन करके एक रंग का दूसरे रंग पाली, काली लाल जातियों का थेट बना हुआ पर अत्याचार करना मनुष्यता का दिवाला ६। चीन और जापान पोनी जाति के लोग माने निकाल देना है। जाने है। इसमें प्रवसिप्ट एशिया के अन्याय की जो मौलिक विशेषताएँ हैं, वे पनिणी शो का बहुभाग तथा प्रामिका के सभी रंग के मनुष्यों में पाई जाती है। गौर मन निवासी काली जाति माने जाते है। अमे. मनप्य दयाल भी होते हैं और कलर भी ईमानरिका में भी ये लोग बसे हुए है। अमेरिका के चार भी होते है और वेईमान भी। यही हात मूलनिवासी लाल जाति के रेड इंडियन ] कह• काली. पीला श्रादि का भी है। एक काला लगते है जिनकी संख्श अब बहुत थोडी है। भाभी गोरे की सेवा कर, सहायता दे और घगपोच लोग ये यूरोप में हो या अन्यत्र, भूरी दृतग गोरा आदमी उसे घोल्य दे, लूटले, तो उस गति के लोग रहलान है। यह जातिभेद कपन गोरे गोबर काला आममी अच्छा मालूम होगा का प्रया में बहुन अगर फैला हुआ है। वह गोग युग। मनुष्यता की, हदय की.
नीगने की आता या पल र न्यायको प्रावाज यही है मनुष्य पशुओ तक से
गाने ने मरे ग न्यासकर मिना रखना है। एक गोग मनुष्य काले घोडेसे मियानगोगा की पकी प्रेम कर मरता है, और एक काला पान्मी मफेट पगामायानन पाट मानकानन घाज से, नय रंग-भे कारण मनुप्र मनाय में गहमाग राईनाथा। अभी भी से भी प्रेम नमसरं, यह कैसी प्रानजनक
गयायाम परिसर भी मूडना । रोमेन ! आज भी मभी निज पर नहीं आते मी एक
पर भी गगी चालीसा गुम्ब तोता है, कमी दूसरे रंगवानी ARE TARina मौत। 1न अवामा उन्नन नाना