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मत्याभून
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इसकी कमर टूट जाती है, और भय तथा भी आत्मरक्षण अभ्याम्य अाक्रमण स अपने चिन्ता के मारे चैन से नीद नहीं आती। मनुस्य को बचाना 7 मे होनेवालो हिसा पाप नहीं है। प्रान अपनी ही छाया से डरकर काप रहा है, उसी प्रकार राष्ट्रीयता पाप होने पर भी श्रात्म मनुष्य जाति अपने ही अंगों से अपने अग रक्षण के लिये-अत्याचार के विरोध के लियतोड रही है। प्राचीन युग में जिस प्रकार छोटे राष्ट्रीयता की उपासना पाप नहीं है। बल्कि जो छोटे सरदार दल बाधकर आपस में लड़ने में राष्ट्रसं भी छोटी छोटी दलबिन्दया के चार में अपना जीवन लगा देते थे, इस प्रकार कभी दूसरो पड कर राष्ट्रीयता से भी अधिक मनु वता का को सताते थे, और कभी दूसरी से सनाये जाते नाश कर रहे है, उनके लिये रास्ट्रीयता आगे को थे, इसी प्रकार आज मनुष्य जाति राष्ट्रीयना के मजिल है। इसलिये चे अभी राष्ट्रीयता की पूजा मुद्र स्वार्थों के नाम पर लड़ रही है। पुराने सर- फरक मनष्यता की ही पूजा करेंगे। इनकी गन्दोदारो की शुद्र मनोवृत्ति पर आज का सनुपय पासना दुसरा के कहर गद्रीयतारूपी पाप को हसता है, परन्तु क्या वही मनोवृत्ति कुछ विशाल दूर करने के लिये होगी। रूप में राष्ट्रीयता के उन्माद में नहीं है। क्या राष्टीयना के अपवादो को छोड़कर वह भी हसन लायक नहीं है ? क्या मनुष्य अन्य किसी ढंग से गष्ट्रीयता को उपासना किसी दिन अपनी इस मूर्खता और मुद्रा को करना मनुष्य जाति के टुकड़े करके उस विनाश न समोगा।
के पत्रपर आगे बढ़ाना है। राष्ट्र की जाति का हा कभी कभी मनुष्य में राष्ट्रीयता पवित्र रूप देना तो एक मूर्खता ही है। मनुष्य में रूप में भी आती है, वह तब, जब कि वह मनु- कोई जाति तो है ही नहीं परन्तु जिनको मनुष्य प्यता की दासी पुत्री-अग बन जाती है। उस ने जानि नमस रक्या है. उनका मिश्रण प्रत्येक ममय वह मनुष्यता का विरोध नहीं करती, सेवा जाति में हुआ है । भारतवर्ष में प्रार्य और करतो हे सिपाही यदि सरकार का सेवक वन द्रविड मिलकर बहन कुछ एक होगये है। शक, कर हमारे पास आवे तो हम उसका श्रावर हण पाहि भी मिल गये हैं। मुसलमाता के साथ करेंगे परन्तु यदि वह स्वय सरकार बनकर हमारे भी रक-भिन्नण होगया है। अमेरिका तो अमा सिर पर सवारी गाठना चाहे तो वह हमारा शत्रु कल ही अनेक राष्ट्र के लोगों से मिलकर एक है। इसी प्रकार जब राष्ट्रीयता, मनुष्यता की राष्ट्र बना है। इसी प्रकार दुनिया के अन्य किसी दासी बनकर, मनुष्यता के रक्षण के लिये पाती
भी देश के इतिहास को देखो तो पता लगेगा कि है तब यह देवी की तरह पूज्य है। परन्तु अब उसमें अनेक तरह के लोगों का मिश्रण हुआ है वह मनुष्यता का भक्षण करने के लिये हमारे
इससे मालूम होता है कि गाटू भेद से भी जातिपास आती है तब वह शत्रु के समान है । मनः भेद का कोई सम्बन्ध नहीं है । इस ष्टि से भी झं रक्षण के लिए, जीवन की शांति के लिये, हमें मनध्य-जाति एक है। उसका परित्याग करना चाहिये।
यहकार का पुजारी यह कभी कभी पाप गति एक राष्ट्र किसी दूसरे राष्ट्र के ऊपर की पूजा को भी धर्मपूजा का रूप देता है शैतान आक्रमण करता है, उसे पराधीन कमाता है, या को खुदा के बेप मे सजाता है और स्तुति के बनाये हुए है, इसलिये पीड़ित राष्ट्र अगर राष्ट्रीलिये अच्छे शो की रचना करता है। वह यता को पासना करता है, तो वह मनुष्यता को अहंकारपूर्व कटर राष्ट्रीयता की पूक्षा के लिये हो पपासना है, क्योंकि इसमें अत्याचार या सभ्यता सस्कृति आदि की दुहाई देता है। परंतु अत्याचारी काही विरोध किया जाता है, मनुः जुदे जुदे देशों की सभ्यता संस्कृति आदि आखिर प्यना का नहीं जिस प्रकार हिंसा पाप होने पर क्या बना है। और इसकी उपासना का क्या