Book Title: Satyamrut Drhsuti Kand
Author(s): Satya Samaj Sansthapak
Publisher: Satyashram Vardha

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Page 166
________________ - - इस विषय में एक बात यह कही जा सकती का प्रयत्न को जहा जनसख्या कम हो । परन्तु है कि " यदि मनुष्यता के नामपर भी आयात वहा जाकर अगर अपनी कोई विशपता की रक्षा नियोत का प्रतिवन्ध बना ही रहा तन राष्ट्रीय करने की कोशिश की जायगी, उसके लिये कोई कट्टरता का नाश कैसे होगा। प्रत्येक राष्ट्र की विशेष सुविधा मागी जायगी तो यह नीति सफल कठिनाइयाँ बढ़ जॉयगी। मानलो कि एक राष्ट्र न होगी। इसलिये श्यावश्यक यह है कि जिस ऐसा है जिससे लोहा और कोयला बहुत है, राष्ट्र में हम जाकर इसे वहा के निवासियों में परन्तु कृषि के योग्य स्थान नहीं है, और दूसरा हम मिल जाये । इसके लिये मनुष्योचित सद्देश ऐसा है कि जो इससे उल्टा है। अब यदि गुणों को छोड़ने की या वहा क दुर्गुणों को अप. दूसरा देश पहिले के मालपर प्रतिबन्ध लगाये नाने की जरूरत नहीं है, सिर्फ आत्मीयता राट तो पहिला देश भूखो मर जायगा। मेसी अवस्था करने की, भाषा आदि को अपनाने की तथा में मनुष्यता की भावना कैसे रह सकती है। अपनी जातीय कट्टरता का त्याग करदेने की जरु. . यदि मनुष्यता की भावना हो, अहंकार रत है। इस नीति से न तो किसी राष्ट्र को भूखा और आक्रमण का दुर्विचार न हो तो यह समस्या । मरना पडेगा न किसी को दूसरे राष्ट्र का बोझ कठिन नहीं है । जिस राष्ट्र के पास अनाज नहीं उठाना पड़ेगा। है, वह अनार के आयात पर प्रतिबन्ध क्या विश्वशाति और मनुष्य की उन्नति के लिये लगायगा ? और जिसके पास लोहा नही है वह इस प्रकार की व्यवस्था आवश्यक है। जब तक लोहे के आयात पर प्रतिबन्ध क्यों लगायगा। मनुष्य राष्ट्र के नाम पर जातिमेट की कल्पना इस प्रकार का मान हो आपस में बदल लेना लिय रहेगा, वर तक वह एक दूसरे पर अत्याचार चाहिये । स्वेच्छा और सुविधा से एक माल से करता ही रहेगा। इसलिये एक न एकदिन राष्ट्र दूसरा माज बदलना कोई आपत्तिजनक नहीं है। के नाम पर फैले हुये जातिभेद को तोड़ना ही हा, अन्तर्यष्ट्रीय व्यवहार में सो सम्पत्ति का पड़ेगा, एक मानव राष्ट्र बनाना पडेगा, तभी वह माध्यम हो उसे बीचन की कोशिश न करना चैन से बैठ सकेगा। चाहिये। मानलो कि सोना माध्यम है, या चाँदी __ अन्तराष्ट्रीय विवाह का रिवाज भी इसके माध्यम है तो अपना माल अधिक लिय बहुत छ उपयोगी हो सकता है इसलिये देने की कोशिश करना और बदले में माल ने उसका भी अधिक से अधिक प्रचार करना लेकर सोना चान्दी लेना पक्षमण है। TRA चाहिये । इस विषय में कानून का अन्तर है, का विचार छोड़ दिया जाय और फिर जो बदला परन्तु रूड़िकी गुलामी दूर कर देने पर कानून वाली हो उससे दोनों राष्ट्रों को लाम होगा। का वह विषमता दूर हो जायगी और जो कुछ इसने पर मी अगर किसी से देश की लो प्रा थाहा बहुन रह जायगी उसे सहन कर लिया तिक सम्पचि ले गरीब है-समस्या हल नहीं हो जायगा। विवाह के पात्रों को यह वात पहिले की नो उसका काम है कि वह किसी देशसे समझ लेना चाहिये। जुड आय जो प्रकृतिक सम्पत्ति से अधिक पूर्ण कहा जा सकता है कि "यों ही वो नागमहा। परन्तु दोनों में भास्य-शासक भाव न होना पहरण की घटनाएँ बहुत होती है। एक राष्ट्र की चाहिये, क्योंकि सो गष्ट्र में शास्त्र-शासक भाव युवतियों को फुसला कर दूसरे राष्ट्र मे ले साना होना मनुष्यता की दिनदहाडे हत्या करना है। और वहाँ उन्हें असहाय पाकर वेश्या बना देना जिन राष्ट्र के पास जीवन निर्वाह की पूरी सामग्री और उनकी शारीरिक शक्ति का क्षय होने पर नही है, जनसंख्या का नियन्त्रण करें अथवा उन्हें भिखारिन बनाकर छोड देना, ये सब घटबदी हुई जनसम्पया को किसी प्रेमी जगह बसाने ना दिल दहलादेने वाली हैं । अन्तराष्ट्रीय

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