Book Title: Satyamrut Drhsuti Kand
Author(s): Satya Samaj Sansthapak
Publisher: Satyashram Vardha

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Page 165
________________ दृष्टिका mummanan स्त्रियो को पददलित करना अगर किसी देशकी लिये कर लगायगा कि उसका व्यापार सुरक्षित विशेषता हो तो उसे अपनाये रहना पाप हैं। रहे और उसकी आर्थिक अवस्था खराब न हो ऐसी विशेषता का जितनी जल्दी नाश हो उतना जाय, बेकारी न बढ़ जाय, तो आपके शब्दोमें वह ही अच्छा है। हमे विशेषता नहीं किन्तु उन राष्ट्रीयता की पूजा होने से पापरूप होगी। इस गुणा का पुजारी होना चाहिये जो मानवजीवन सिद्धान्तसे तो सचल राष्ट्र सयल होते जायेंगे और को सुग्यमय बनाते हैं । इसलिये हमारा यह निर्बल पिसते जायगे।" महान कनय है कि हम गष्ट्रों की सब विशेष. राओ को मिटा दे। जो विशेषताएँ खराब है इस प्रश्न का कुछ उत्तर दिया आचुका है। दुग्यकर है उनको नो नाश करके मिटा देना एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र पर अगर आर्थिक आक्रमण चाहिये परन्तु जो विशेषताएँ सुग्वकर हैं अच्छी करता है तो आयात पर प्रतिबन्ध लगाकर उस हैं उनको विना नाश किये मिटा देना चाहिये श्रीक्रमण को रोकना अनुचित नहीं है। दूसरे राष्ट्र में अगर राष्ट्रीय कट्टरता है और वह किसी प्रति उनका सभी गप्ट्रो में प्रचार कर देना चाहिये जिससे वे विशेपलप छोडकर सामान्य राष्ट्र पर आर्थिक आक्रमण करता है वो उसका उसी तरह सामना करना चाहिये, इसमे कोई ঘণ ঘা কাল। पाप नहीं है। इतना ही नही किन्तु प्रत्यक राष्ट्र ऊपर जो घात स्वभाव के विषय में कही को-जबकि उसका शासनतन्त्र जुदा है कर्तव्य गई है, वही बात कौटुम्बिक रीतिनीति के विषय है कि यह आर्थिक योजना के रक्षण के लिये में कही आसकती है। जिन देशों की कौटुम्बिक आयात निर्यात पर नियन्त्रण रक्खे । इस व्यवस्था खराब है, वे अपनी वह कौटुम्विक आर्थिक योजना का प्रभाव समाज को सुख-शान्ति दुर्व्यवस्था छोड्दे और किसी देश की अच्छी से पर भी निर्भर है। मानलो एक राद ऐसा है जो अच्छी कौटुम्बिक व्यवस्था अपना लें। अगर मजदूरों से दस घंटे काम लेता है और ऐसे यन्त्रो कोई विशेषता रहे भी तो परिस्थिति की दुहाई का उपयोग करता है जिससे थोड़े आदमी बहुत देकर रहना चाहिये राष्ट्रीयता सभ्यता आदि की काम कर सकते हैं, इससे बहुत से आदमी बेकार दुहाई देकर नहीं। हो जाते हैं अथवा मजदूरों को सख्त मजूरी करना ___ इस प्रकार किसी भी प्रकार की सभ्यता या पद्धती है। परन्तु दूसरा राष्ट्र ऐसा है कि वह संस्कृति की दहाई देकर मनुष्य जाति के टकडे एस यन्त्रों का उपयोग करता है जिससे वेकारी करने की कोई जरूरत नहीं है, बल्कि ऐसा करना न घढे, तथा वह मजदूरों से सख्त मिहनत भी नहीं लेना चाहता ऐसी हालत में उसका माल पाप है। सभ्यता और संस्कृति मनुष्य के टुकडे महंगा पड़ेगा। इसलिये आर्थिक दृष्टि से जीवित करने के लिये नहीं किन्तु उसके प्रेम के क्षेत्र को रहने के उसके सामने दो ही मार्ग होगे या तो विशालतम बनाने के लिये हैं, उन्नति के लिये हैं, वह आयात पर प्रतिबन्ध लगावे, या मजदूरों से पारस्परिक सहयोग के लिये हैं । इसलिये राष्ट्र ज्यादा मिहनत ले। मनुष्य की सुख शान्ति के के नामपर चलता हुआ यह जातिभेट भी नष्ट लिये पहिला मार्ग ही ठीक है। इसलिये श्रायात होना चाहिये। पर कर लगाना उचित है । वास्तव में यह राष्ट्रीकोई माई कहेंगे कि 'यदि राष्ट्रीयता नष्ट यता की पूजा नही, मनुप्यता की पूजा है। दूसरे करदी जायगी नत्र तो सबल राष्ट्र नियल राष्ट्र देश पर आक्रमण करने में कट्टर राष्ट्रीयता है, को पीस डालेंगे, लूट डालेंगे और आपका यह परन्तु दूसरे के आक्रमण से अपनी रक्षा करने वक्तव्य उनके कार्यों को नैतिक बल प्रदान करेगा। मे, अपनी सुखशान्ति बढ़ाने में तो मनुष्यत्ता निर्बल राष्ट्र अगर सबल राष्ट्र के मालपर इस- को ही पूजा है।

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