Book Title: Satyamrut Drhsuti Kand
Author(s): Satya Samaj Sansthapak
Publisher: Satyashram Vardha

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Page 164
________________ सत्यामृत - - - - - - --- लटक रही है। मनप्य एक समझार प्राणी है, दुहाई दका नही, किन्तु आर्थिक सुविधा की इसलिये उसका काम है कि उनके वर्तमान युग दुहाई देकर, विनय और प्रेम की दुहाई देकर । में जो जो अच्छी, सुलभ और दूसरी को हनि । न पहुंचानेवाली वस्तुएँ हो उनका उपयोग करे।। इसी बुद्धिमत्ता में उसकी संस्कृति और सभ्यता । का जो रूप बनाया जाना है वह तो बिलकुल है। पुगने जमाने की अविकसित वस्तुओं को मर्थ है। अब रह गया सभ्यता का मानसिक अपनाये रहने मे सभ्यता और संस्कृति की रक्षा और कौटुयिक रूप । कहा जाता है कि " प्रत्येक नहीं है। देश की एक विशेष मनोवृत्ति होती है। इंग्लेण्ड इसके विरोध में यह यात अवश्य नहीं जा का मनुष्य मात्रा से कुछ अविक रान्भीर है, जब नादनी मात्रा से कुछ, अक्कि सकती है कि-" कोई देश बन्त्रा के द्वारा फैली हुई बेकारी को दूर करने के लिये चरखा बुग का __ गतूनी । भारत के वायव्य कोण का मनुष्य या सहारा ले, दूसग के आर्थिक आक्रमण से बचने एक पठान स्वभावत अविकच और असहिष्णु के लिये पुरानी चीजा के उपयोग करने की ही होगा जब कि भारत का मनुष्य मात्रा से अधिक कोशिश करे तो क्या इसकी अनुचित कहा शान्त होगा। मनुष्य बनाव को ये विशेषताएँ जायगा । एक राष्ट्र से दूसरे राष्ट्र को जुदा करती हैं। आधिक अाक्रमण से बचने के लिय र अगर राष्ट्रीय भेट न माना जाय तो ये विशेषताएँ मार्ग कहा तक ठीक है यह बात दूसरी है. परन्तु नष्ट हो जाय । क्या इनका नष्ट करना उचित हे १३७ अगर कोई इसी दृष्टि से पुरानी चीजा का उपयोग इसके उत्तर में दो बात कही जा सकती हैं। करना चाहे तो इसमें मुझे बिलकुल विरोध नहीं पहिली तो यह कि मनु-ब की ये विशेषताएं है । उसकी दृष्टि उपयोगिता, सविधा, ATTI स्वाभाविक नहीं है वे राजनैतिक आर्थिक आदि सुव्यवस्था पर होना चाहिय, न कि प्राचीनता परिस्थितियों का फल हैं। क्रान्ति के पहिले टर्की पर, इनका प्रचार सस्कृति और सभ्यता के रनण और रूस के साधारण जन की जो मनोवृत्ति थी के निय नहीं. किन्तु समान का रोटी देने के लियं और आन प्रसकी जां मनोवृत्ति है, अब्राइम लिंकन होना चाहिये। के पहले मारका के हशी की जो मनोवृत्ति कोई भाई कहेंगे कि "जो नवयवक मौज थी और आज जो मनोवृत्ति है, रोमनसाम्राज्य शौक में जीवन वितार सादगी छोड़कर अपने क नीचे कचड़ात हुए इंग्लेण्ड की जो मनोवृत्ति साहिबी खर्चसे मौवापको परेशान करते है.का थी और याज जो मनोवृत्ति है, उनमे समीनउनको न रोकना चाहिये । इसीप्रकार जो अपने आसमान से भी अधिक अन्तर है। आर्थिक, देश की वेपभूपा छोडकर विदेशी वेशभूपा अपना- गजनीतक आदि परिस्थितियों के बदल जाने से कर अपनी एक नई जाति बना लेत हैं, क्या मनुष्य के न्यभाव में जो परिवर्तन हो जाता है, उनका यह कार्य चित है. से राष्ट्रीयता न गेम सकनी है, न रोकना नि सन्दा ये कार अनुचित है परन्त हस- चाहिये । इसलिये राष्ट्रीयता का इसके साथ कोई लिये नहीं कि व विदेशी मान्यता को पनात है, सम्बन्ध नहीं है। किन्तु इसलिए कि उनम मायाप का परेशान दुसरी दान यह है कि राष्ट्रीय विशेषता किया जाता है, अपने को अनुचित रूप में बड़ा होने से ही कोड वन्तु अली नहीं हो जाती। या विशेष समझकर अभिमान का परिचय दिया असीम याला अगर किसी देश को विशेपता हो, जाना है. दुसरा का अपमान किया जाना है, उन्हें बात मान में उसड़ नेऊन, मार ऋठना. हत्या कर रोने, परन्तु प्राचीन संस्कृति या मरना ओ नाना गार किसी देश की विशेषना हो अथवा

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